________________ 658 जैनसाहित्य और इतिहासरर विशद प्रकाश ... A NA . (द्वितीय लेख) - अनेकान्तके प्रथम वर्षको दितीय किरणमें 16 दिसम्बर सन् 1926 को मैंने 'स्वामी पात्रकेसरी पौर विद्यानन्द' नामका एक लेख लिखा था, जिसमें पात्रकेसरी और विद्यानन्दकी एकता-विषयक उस भ्रमको दूर करनेका प्रयत्न किया गया था जो विद्वानोंमें उस समय फैला हुआ था और उसके द्वारा यह स्पष्ट किया गया था कि स्वामी-पात्रकेसरी पोर विद्यानन्द दो भिन्न प्राचार्य हुए है-दोनोंका व्यक्तित्व भिन्न है, ग्रन्थसमूह भिन्न है और समय भी भिन्न है। पात्रकेसरी विक्रमकी ७वीं शताब्दीके विद्वान् भाचार्य प्रकलङ्कदेवसे भी पहले हुए हैप्रकलंकके ग्रन्थों में उनके वाक्यादिका उल्लेख है-पोर उनके तथा विद्यानन्दके मध्य में कई शताब्दियोंका अन्तर है / हर्षका विषय है कि मेरा वह लेख विद्वानोंको पसन्द माया पौर तबसे बराबर विद्वानोंका उक्त भ्रम दूर होता चला जा रहा है / भनेक विद्वान् मेरे उस लेखको प्रमाणमें पेश करते हुए भी देखे जाते हैं / ___ मेरे उस लेखमें दोनोंकी एकता-विषयक जिन पांच प्रमाणों की जांच की गई थी और जिन्हें नि:मार व्यक्त किया गया था उनमें एक प्रमाण 'सम्यक्त्वप्रकाश' ग्रन्थका भी निम्न प्रकार था "सम्यक्त्वप्रकाश नामक ग्रन्थमें एक जगह लिखा है कि'तथा श्लोकवार्तिके विद्यानन्दिअपरनामपात्रकेसरिम्वाममिना यदुक्तं तच्च लिख्यते-तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शन / न तु सम्यग्दर्शनशब्दनिर्वचनसामर्थ्यादेव सम्यग्दर्शनस्वरूपनिणयादशेषतद्विपतिपत्तिनिवृत्तः सिद्धत्वात्तदर्थे तल्लक्षणवचनं न युक्तिमदेवेति कस्यचिदारेका तामपाकरोति।' इसमें श्लोकवातिकके कर्ता विद्यानन्दिको ही पात्रकसरी बतलाया है।" यह प्रमाण सबसे पहले डाक्टर के० बी० पाठको अपने ‘भर्तृहरि पौर हासमें प्रकाशित 'न्यायकुमुदचन्द्रकी प्रस्तावनामें पं० कंमाशचन्द्रशास्त्री भी लिखते है- "इस गमतफ़हमीको दूर करने के लिये, अनेकान्त वर्ष 1 1076 पर मुसि स्वामीपासरी और विद्यानन्द शीर्षक निवम्ब देखना चाहिये" . .