________________ Paraman .. स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द 'सम्यक्त्वप्रकाश' के लेखकने यदि बोनोंको एक लिख दिया है तो वह उसकी स्पष्ट भूल है / पात्रकेसरी स्वामी विद्यानन्दसे कई शताब्दी पहले हुए है। वे ब्राह्मणकुलमें उत्पन्न हुए थे, राज्य में किसी अच्छे पद पर प्रतिष्ठित थे मोर एक बहुत बड़े प्रजन विद्वान् थे / स्वामी समन्तभद्रके 'देवागम' स्तोत्रको सुनकर पापकी श्रद्धा पलट गई थी, माप जैनधर्म में दीक्षित हो गये थे पौर राज-सेवाको भी छोड़ कर जैनमुनि बन गये थे। मापका माचार पवित्र और ज्ञान निर्मल था। इसीसे भगवज्जिनसेनाचाय-जैसे प्राचार्योंने मापकी स्तुति की है और प्रापके प्रतिनिर्मल गुणोंको विद्वानोंके हृदय पर हारको तरहसे प्रारूढ बतलाया है / मापने नहीं मालूम और कितने ग्रन्थोंकी रचना की है / पात्रकेसरिस्तोत्र प्रादि परसे प्रापके ग्रंथ बड़े महत्त्वके मालूम होते हैं। उनका पठन-पाठन उठ जानेसे ही वे लुप्त हो गये है / उनकी ज़रूर खोज होनी चाहिए / 'विलक्षणकदर्थन' ग्रंथ ११वीं शताब्दी में मौजूद था, खोज करने पर वह जैनमहारोंमे नहीं तो बौद्धशास्त्रभंडारोंसे-तिब्बत, चीन, जापान, लंकादिकके बोदविहारोंसे-अथवा पश्चिमी लायरियोंसे जरूर मिल जायगा / जैन समाजमें अपने प्राचीन साहित्यके उद्धारका कुछ भी उल्लेखनीय प्रयत्न नहीं हो रहा है-खाली जिनवाणीकी भक्ति के रीते-फीके गीत गाए जाते है --पोर इसोमे नियोंका सारा इतिहास अन्धकारमें पड़ा हुमा है / और उसके विषयमें सैकड़ों ग़लतफहमियों फैली हुई है / जिनके हृदय पर साहित्य और इतिहासकी इस दुर्दशाको देख-मुनकर चोट पहुंचती है और जो जिनवाणीके सच्चे भक्त, पूर्वाचार्योंके सच्चे उपासक मथवा समाजके सच्चे शुभचिन्तक है उनका इस समय यह खास कर्तव्य है कि वे साहित्य और इतिहास दोनोके उद्धारके लिये खास तौरसे अग्रसर हों, उद्धार-कार्यको व्यवस्थित रूसमें चलाएं और उसमें सहायता पहुंचानेके लिये अपनी शक्तिभर कोई भी बात उठा न रखें। पायसरीकी कबाके अतिरिक्त विद्यामन्दिकृत' सुदर्शनचरित्र' के निम्न साक्यसे भी यह मालूम होता है कि पात्रकेसरी ब्राह्मणकुनमें उत्पन्न हुए थेविप्रशासपीः परिः पवित्रः पात्रकेसरी / समीकविमादाजसेवनकमपुरतः॥'