________________ 656 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश केसरीके बाद क्रमशः वक्रग्रीव, वजनन्दी, सुमति भट्टारक, ( देव ) और समयदीपक प्रकलंक नामके प्रधान प्राचार्य हुए है / यथा__ "तत् ... त्थेर्थमं सहस्रगुणं माडि समन्तभद्रस्यामिगलु सन्दर अवरि बलिक नदीय श्रीमदमिलसंघाप्रेसरर् अप्पपात्रकेमरि-स्वामि गलिं वक्रग्रीवाभिरिन्द् अनन्तरं / __ यस्य दि.........."न् कीर्तिम्त्रैलोक्यमप्यगात् / .......येव भात्येको वनन्दी गुणाग्रणी: / / अरि बलिक सुमति-भट्टारकर अवरिं बलिक समयदीपक रम् उन्मोलित-दोष-क"रजनीचर बलं उद्बोधितं भव्यकमलम प्राय्त् ऊजितम् अकलंक-प्रमाण-तपन स्फु...... | . इससे पात्रकेसरीको प्राचीनताका कितना ही पता चलता है और इस बातफा और भी ममर्थन होता है कि वे प्रकलकदेवम पहले ही नहीं किन्न बहुत पहले हुए है। प्रकल कदेव विक्ररकी ७वी-८वो शताब्दीके विद्वान् है. वे बौद्धताकिक 'धर्मकीति और मीमांसक विद्वान् 'कुमारिल के प्राय: समकालीन थे और विक्रम संवत् 700 मे भापका बौद्धों के साथ महान् वाद हप्रा था. जिसका उल्लेख 'अकलकचरित के निम्न वाक्य में पाया जाता है.. विक्रमाक-शकादाय-शतसम-प्रमाजुपि / कालऽकलंक-यतिना योद्धादा महानभूत् / / और वज्रनन्दी विक्रमकी छठी शताब्दी में हुए हैं। उन्होंने वि०म० ५२६में 'द्राविड' सघकी स्थापना की है. ऐमा देवमनके 'दर्शनमार' ग्रन्थ से जाना जाता है। इसे पात्रकसरोका मग्य छठी शताब्दीमे पहले पांचवी या चौथी शताब्दी के करीब जान पड़ता है। जब कि विद्या- न्दका ममय प्रायः / वी शताब्दीका ही है। प्रतः इस संपूर्ण परीक्षण, विवेचन प्रोर स्पष्टीकरण परमे यह बिल्कुल स्प हो जाता है कि स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द दा भिन्न प्राचार्य हुए है . दोनोंका व्यक्तित्व भिन्न है, ग्रन्थसमूह भिन्न है और समय भी भिन्न है और इनि