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________________ स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द / 64 एक 'जिनेन्द्रगुणसंस्तुति' का, जिसे 'पात्रकेसरिस्तोत्र' भी कहते हैं और जो छप चुका है, और दूसरा 'विलक्षणकदर्थन' का, जो अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ। इम 'त्रिलक्षणकदर्थन' के साथ ही पात्रकेसरीकी खाम प्रसिद्धि है / वौद्धोंके द्वारा प्रतिपादित अनुमान-विषयक हेतुके विरूपात्मक लक्षणका विस्तारके साथ खंडन करना ही इस ग्रन्थका अभिप्रेत है। श्रवणबेलगोलके 'मल्लिषेण प्रशास्ति' नामक शिलालेख ( नं०५४/६७ ) में, जो कि शक मं० 1050 का लिम्वा हया है, 'विलक्षणकदर्थन' के उल्लेखपूर्वक ही पात्रकेसरीकी स्तुति की गई है। यथा-~ महिमा मपात्रकेसरिगुरोः परं भवति यम्य भक्त थामीत् / पद्मावती महाया त्रिलक्षण-कदथनं कतुं म / / म बतलाया है कि उन 'पात्रकेमग गुरुका बडा माहात्म्य है जिनकी भक्ति के वश होकर पद्मावती देवीने 'विलक्षणकदर्थन' की कृतिमें उनकी सहायता की थी' / कहा जाता है कि पद्मावती के प्रमादमे ग्रापको नीचे लिम्वे इलोकको प्राप्ति हुई थी और उसको पाकर ही ग्राप बौद्धोक अनुमान-विषयक हेतुलक्षणका खाटन करने के लिये ममयं हुए थे..... अन्यथानुपपन्नत्यं यत्र नत्र यंग किम / नान्यथानुपपन्नत्यं यत्र तत्र त्रया किम / / कथाकोग-वगिात पाकमगकी कथा में भी यह लोक दिया है गोर बा तसे न्याय-मिद्धान्तादि-विषयक अन्योमे यह उद्धन पाया जाता है / इम इलाककी भी पात्रके मर्गक नामक माथ खाम मिद्धि है और यही अापके विलक्षणकदर्थन' ग्रन्धका मूल मन्त्र जान परना है। यहाँ. पाठको को यह जान कर प्रापचयं होगा कि प्रेमीजी अपने उक्त लेखमे इस ग्रन्थको मत्ता ही नकार करते हैं और लिखते है कि वास्तव में 'त्रिलगणक दर्थन' कोई ग्रन्थ नहीं है / पद्मावतीने 'अन्यथानुपपन्नत्व' प्रादि दलोक लिख कर पात्र मर्गक जिस अनुमानादि-विषयक विलक्षणके भ्रमको निराकरण किया था, उसी का यहां (मल्लिपा प्रशस्तिमे) उल्लेख है।'' परन्तु प्रापका यह लिखना ठीक नही है; क्योंकि यह ग्रन्थ ११वी शताब्दी के विद्वान् वादिराजमूरि-जैसे प्राचीन प्राचार्योंके सामने मौजूद था और उन्होंने 'न्यायविनिश्चयालकार में
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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