________________ vi 650 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश पात्रकेसरीके नामके साथ उसका स्पष्ट उल्लेख किया है और अमुक कपनका उस शास्त्रमें विस्तारके साथ प्रतिपादन होना बतलाकर उसके देखने की प्रेरणा की है। जैसा कि उनके निम्न वाक्यसे प्रकट है- / "त्रिलक्षणकदर्थने या शास्त्र विस्तरेण श्रीपात्रकेसरिम्वामिना प्रतिपादनादित्यलमभिनिवेशेन / " (5) वादिराजसरिने, 'न्यायविनिश्चयालंकार' नामक अपने भाष्य में 'अन्यथानुपपन्नत्वं' नामके उक्त श्लोकको नीचे लिखे वाक्यके साथ उद्धृत किया ___"तदेवं पक्षधर्मत्वादिमन्तरेणाप्यन्यथानुपपत्तिबलन हेतोर्गमकत्वं तत्र तत्र स्थाने प्रतिपाद्यभेदं स्वबुद्धिपरिकल्पितमपि तुपरागमसिद्ध मित्युपदर्शयितुकामः भगवत्सीमंधरस्वामितीर्थकरदेवसमवसरणाद्गणधरदेवप्रसादापादितं देव्या पद्मावत्या यदानीय पात्रकेसरिस्वामिने समर्पितमन्यथानुपपत्तिवार्तिकं तदाह-" और इसके द्वारा इतना विशेष प्रौर मूचित किया है कि उक्त इनोक पद्मावती देवीने सीमंधरस्वामी तीयंकरके समवसरण में जाकर गणधरदेवके प्रसाद से प्रास किया था और वह 'अन्यथानुपपत्ति' नामक हेतुलक्षणका वार्तिक है / प्रस्तु; यह श्लोक पात्रकेसरीको पद्मावतीदेवीने स्वयं दिया हो या गणघरदेवके पाससे लाकर दिया हो अथवा अपने इष्ट देवताका ध्यान करने पर पात्रकेसरीजीको स्वतः ही सूझ पहा हो ( कुछ भी हो ), किन्तु इस प्रकारके उल्लेखोंसे यह निःसन्देह जान पड़ता है कि लोकमें इस इलोकके प्राद्य प्रकाशक पात्रकेसरी स्वामी हुए है / और इसलिये यह पद्य उन्हीं के नामसे प्रसिद्ध है। विद्यानन्दस्वामीने प्रमाणपरीक्षा और श्लोकवार्तिक नामक अपने दो ग्रंयोमें 'तथोक्त", 'तथाह च' शब्दोंके माय पात्रकेमरीके उक्त श्लोकको उद्धृत किया है / और इससे यह जाना जाता है कि पात्रमरी स्वामी विद्यानन्दमे भिन्न ही नहीं किन्तु उनसे पहले हुए है / (6) 'तत्त्वसंग्रह' नामका एक प्राचीन गौद्धग्रन्थ, पजिका सहित, बड़ोदाकी 'गायकवाड-पोरियंटल-सिरीज' में प्रकाशित हुमा है / यह मूल पंप प्राचार्य 'शान्तरक्षित'का बनाया हुमा है और इसकी पंजिकाके कर्ता उनके शिष्य 'कमल