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________________ 648 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश (2) विद्यानन्दके बाद होनेवाले प्रभाचन्द्र और वादिराज-जैसे प्राचीन प्राचार्योने भी 'विद्यानन्द' नामसे ही आपका उल्नेख किया है। यथाविद्यानन्द-समन्तभद्रगुणतो नित्यं मनोनन्दनम् --प्रमेयकमलमातंण्ड ऋजुमूत्रं स्फुरद्रत्नं विद्यानन्दस्य विम्मयः / शृण्वतामप्यलंकारं दीतिरंगेष रङ्गति / / / -पार्वनाथचरित (3) शिलालेखोंमे भी 'विद्यानन्द' नाममे ही प्रापका उल्लेख मिलता है और यह कहीं मुचित नहीं किया कि विद्यानन्दका ही नाम पात्रकमरी है। प्रत्युत इसके, हुमचाके उक्त गिलालेख में जिमका परिचय ऊपर दिया जा चुका है. दोनोको अलग अलग गुरु मूचित किया है / उममे भट्टाकलं कके बाद विद्यानन्दकी स्तुतिके तीन पद्म दिये है और उनमें प्रापकी कृतियोंका-प्रासमीमांसालंकृति ( अष्टमहम्री ), प्रमाणपरीक्षा. प्राप्तपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, विद्यानन्दमहोदय और लोकवातिकालकारका-उल्लेग्य करते हुए मवंत्र प्रापको विद्यानन्द नामगे ही उल्लेखित किया है / यथा--- अलंचकार यम्मावमाप्रमीमांमितं मतं / स्वामिविद्यादिनन्दाय नमम्नम्मे महात्मने / यः प्रमाणाप्रपत्रागा परीक्षाः कृतवान्नुमः / विद्यानन्दस्वामिनं च विद्यानन्दमहोदय / / विद्यानन्दम्वामी विचितवानलोकवार्तिकालंकारं / जयनि कविविबुधतार्किकचूडामगिरमल गुगानिलयः / / (8) विद्यानन्दकी कृतिपमे जो अन्य प्रसिद्ध है उनमेंमे किमीका भी उल्लेम्व पात्रकेमरी के नामके माथ प्राचीन माहित्यमे न. पाया जाता पोर न पात्रकेमगेको कृतिम्ग प्रसिद्ध होनेवाले ग्रन्थों का उल्लेम विद्यानन्द के नाम के साथ ही पाया जाता है। यह दुर्ग वान है कि प्राज-कल के कुछ प्रकारक प्रथवा मंशोधक महाशय दोनाकी एकनाके भ्रमवश एकका नाम दूसरे के माथ जोड़ देवें / अस्तु; पाकमरीकी कृतिरूपसे सिर्फ दो ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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