________________ स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द है, और इससे ऐमा मालूम होता है कि शायद के०बी० पाठक महाशयने ही इस प्रमाणको पहले उपस्थित किया है / परन्तु पहले चाहे जिसने उपस्थित किया हो, किन्तु इसमें सन्देह नहीं कि यह ग्रन्थ अपने उक्त वाक्यकी लेखन-शैली परसे बहुत कुछ प्राधुनिक जान पड़ता है-प्राश्चर्य नही जो वह उक्त 'ज्ञानसूर्योदय' नाटकसे भी अर्वाचीन हो-पोर मुझे इस कहनेमे जरा भी सकोच नही होता कि यदि इस ग्रन्थके कर्ताने "श्लोकवार्तिक विद्यानन्द्यपरनामपात्रकेसरिस्वामिना यदुक्तं तच्च लिख्यते' यह वाक्य इमी रूपम दिया है तो उसे इसके द्वारा विद्यानन्द और पात्रकेसरीस्वामीको एक व्यक्ति प्रतिपादन करने में जरूर भ्रम हुप्रा है अयवा उमके समझनेकी किमी गलतीका हो परिणाम है; क्योंकि वास्तवमें पात्रकेसरीस्वामी और विद्यानन्द दोनोंका एक व्यक्तित्व सिद्ध नही होता-प्राचीन उल्लेखों अथवा घटनासमूह परमे वे दो भिन्न प्राचार्य जान पड़ते हैं / और यह बात ऊपरके इस मंपूर्ण परीक्षण तथा विवेचनको ध्यान में रखते हुए नीचे दिये म्पष्टीकरणमे पाठकोंको और स्पष्ट हो जायगी:दोनोंकी भिन्नताका स्पष्टीकरण (1) विद्यानन्दस्वामीने स्वरचित श्लोकवानिकादि किसी भी ग्रन्थमें अपना नाम या नामान्तर पात्रकेसरी नहीं दिया, किन्तु जिन तिम प्रकारमे 'विद्यानन्द' का ही उल्लेख किया है / “विद्यानन्द' के अतिरिक्त यदि उन्होंने कहीपर किमी तरहम अपना कोई उपनाम, उपाधि या विशेषण मूचित किया है तो वह 'सत्यवाक्याधिष' या 'मत्यवाक्य' है, जैसा कि निम्न अवतरणों से जान पड़ता हैविद्यानन्दबुधैरलंकृतमिदं श्रीसत्यवाक्याधिपः / -युक्त्यनुशामनटीका मत्यवाक्याधिपाः शश्य द्विद्यानन्दाः जिनेश्वराः -प्रमाणपरीक्षा विद्यानन्दः स्वशक्तया कथमपि कथिन सत्यवाक्यार्थसिद्धय / / -प्राप्तपरीक्षा