________________ .646 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश संडनात्मक वाक्य 'प्रष्टशती' के नहीं किन्तु 'माप्तमीमांसा' के वाक्य है, जिस को 'देवागम' भी कहते हैं। मोर इस देवागम-स्तोत्रकी बाबत ही यह कथा प्रसिद्ध है कि इसके प्रभावसे पात्रकेसरी विद्वान अजैनसे जन हए थे-समन्तभद्र-भारतीस्तोत्र' में भी 'पात्रकेसरिप्रभावसिद्धकारिणी स्तुबे वाक्यके द्वारा इसी बात को सूचित किया गया है / पात्रकेसरीको 'प्रष्टशती' की प्राति हुई थी और वे उसकी प्राप्तिके पहलेसे ही संपूर्ण स्याद्वादके अभिप्रायोंको मच्छी तरहसे जाननेवाले थे, नाटकके -म कथनकी कहीमे भी कोई सिद्धि तथा पुष्टि नहीं होती पोर न मष्टसहस्रीमे हो उमके कर्ताका नाम अथवा नामान्तर पात्रकेसरी दिया है / जान पडता है नाटकके कर्ता भट्टारक वादिचन्द्रको अष्टशतीका प्रष्टसहस्रीके द्वारा पुष्ट होना दिखलाना था और उसके लिये उन्होंने वैसे ही उसके पुष्टकर्तारूप 'पात्रकेसरी' नामकी कल्पना कर डाली है / मोर इसलिये उसपर कोई विशेष जोर नहीं दिया जा सकता और न इतने परसे ही उसे ऐतिहासिक सत्य माना जा सकता है / ____ हाँ, पहले प्रमारणमें 'सम्यक्त्वप्रकाश' नामक ग्रन्थको जो पंक्तियां उद्धृत की गई है उनसे विद्यानन्द और पात्रकेसरीका एक होना जरूर प्रकट होता है। और इस लिए इस प्रमागाचकमें परीक्षा करने पर यही एक ग्रन्थ रह जाता है जिसके प्राधारपर प्रकृत-विषयके सम्बन्धमें कुछ जोर दिया जा सकता है / यह ग्रन्थ मेरे सामने नहीं है-प्रेमीजीको लिखने पर भी वह मुझे प्राप्त नही हो मका और न यदो मालूम हो म है कि वह किमका बनाया हमा है और कब बना है। प्रेमीजी लिखते है-'मन्यवत्वप्रकाशके विषय में कुछ भी नहीं जानता हूं / (मेग) वह लेख मुख्यत: पांगलके मगठी लेखके आधारमे लिखा गया था; और उन्होंने शायद के० बी० पाठके अंग्रेजी लेखक प्राधारमे लिखा होगा, ऐमा मेरा अनुमान है / '' प्रम्न डाक्टर शतोश्चन्द्र विद्याभूषणने भी, अपनी इंडियन लांजिककी हिस्टगेम, के. बी. पाठकके अंग्रेजी लेखके आधार पर 'सम्यक्त्वप्रकाश के इस प्रमाणका उल्लेख किया _ 'जैनग्रन्थावलो' में मालूम होता है कि इस नामका एक अन्य दक्कन कालेज पूनाकी लायग्रे रीमें मौजूद है / संभव है कि वह यही प्रकृत ग्रन्थ हो / और के० बी० पाठक महाशयने इसी ग्रन्थप्रति परमे उल्लेख किया हो।