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________________ स्थामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द 641 [इसमें लिखा है कि 'भट्टाकलक, श्रीपाल और पात्रकेसरीके प्रतिनिर्मल गुरण विद्वानोके हृदयपर हारको तरहसे प्रारूढ है।] परन्तु इस टिप्पणीकी बाबत यह नहीं बतलाया गया कि, वह कौनसे प्राचार्य अथवा विज्ञानकी की हुई है ? कब की गई है ? अन्यत्र भी प्रादिपुरासकी वह समूची टिप्पणी मिलती है या कि नहीं? और यदि मिलती है तो उसमें भी प्रकृत पदको वह टिप्पर मौजूद है या कि नहीं ? प्रयवा जिम ग्रंथप्रति पर टिप्पणी है वह कबकी लिखी हुई है? और वह टिप्पणी उसी ग्रन्थलिपिका अंग है या बादको की हुई मालूम होती है ? बिना इन सब बातोंका स्पष्टीकरण किये और यह बतलाए कि वह टिप्पणी अधिक प्राचीन है -कममे कम 'सम्यक्त्वप्रकाश' और 'ज्ञानसूर्योदय नाटक' की रचनासे पहले की है-प्रथवा किसी मान्य अधिकारी पुरुष-द्वारा की गई है, इम प्रमारणका कोई खास महत्त्व और वजन मालूम नहीं होता / हो सकता है कि टिप्पणी बहुत कुछ अाधुनिक हो और वह किसी स्वाध्यायप्रेमीने दलकयापर विश्वास करके या सम्यक्त्वप्रकाशादिकको देख कर ही लगा दी हो। पांचवां प्रमाण एक शिलालेख पर प्राधार रखता है और उस लेखकी जोवमे वह बिल्कुल निर्मूल जान पड़ता है। मालूम होता है प्रेमीजीके (अथवा तात्या नेमिनाथ पांगलके मी) सामने यह पूरा शिलालेख कभी प्राप्त नहीं हुमा, उन्हें उसके कुछ खंडोंका सारगिमात्र मिला है और इमोलिये उन्हें इस प्रमाणको प्रस्तुत करने तथा शिलालेखके प्राधारपर अपने लेखमें विद्यानन्दका कुछ विशेष परिचय देने में भारी धोखा हुप्रा है / प्रस्तु; इस प्रमारणमे प्रेमोजीन शिलालेखक जिम अन्तिम वाक्यकी पोर इशारा किया है उसे यहां दे देने मात्रसे ही काम नहीं च नेगा. पाठकों के समझनेके लिये अनुवादरूपमें प्रस्तुत किये हए प्रेमीजीके उस पूरे शिलालेख को ही यही दे देना उचित जान पड़ता है और वह इस प्रकार है "विद्यानन्दस्वामीने नजराज पट्टणके राजा नंजकी सभामें जाकर नन्दनमल्लि भट्टसे विचार करके उसका पराभव किया / ....."शतवेन्द्र राजाको सभामें एक काम्पके प्रभावसे समस्त श्रोतामोंको चकित कर दिया। ......शाबमल्लि रागाकी सभा पराजित किये हुए वादियों पर विद्यामन्दिने क्षमा की।.........
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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