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________________ 640 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश स्वयंभूस्तोत्रादिकी तरह यही इसका वास्तविक तथा सार्थक नाम जान पड़ता दूसरे प्रमाणमें जिस टिप्पणीका उल्लेख है वह प्रादिपुराणके निम्न वाक्य में प्रयुक्त हुए 'पात्रकेसरिणां' पद पर जान पड़ती है, क्योंकि अन्यत्र प्रादिपुराणमें पात्रतेसरीका कोई उल्लेख नहीं मिलता: भट्टाफलंक-श्रीपाल-पात्रकेसरिणां गुणाः / विदुषां हृदयारूढा हारायन्तेऽतिनिर्मलाः / / + यह ग्रन्थ मणिकचन्दग्रन्थमालामें एक साधारण टीकाके साथ प्रकाशित हुआ है, जिसके कर्ता प्रादिका कुछ पता नहीं। टीकाके शुरूमें मंगलाचरण के तौरपर एक श्लोक रक्खा हुमा है जिसमें 'वृहत्पंचनमस्कारपदं वित्रियतेधुना' यह एक प्रतिज्ञावाक्य है और इससे ऐसा ध्वनित होता है मानों मूल अन्यका नाम 'वृहतपंचनमस्कार' है और इस टोकामें उसीके पदोंकी विवृत्ति की गई है। चुनॉचे पं० बाथूरामजी प्रेमीने अपने प्रन्यपरिचयमें ऐसा लिख भी दिया है / परन्तु ग्रन्थके संदर्भको देखते हुए यह नाम उसके लिये किसी तरह भी उपयुक्त मालूम नहीं होता / द्रव्यसंग्रहको ब्रह्मदेवकृत-टीकामें एक स्थानपर बारह हजार श्लोकसंख्यावाले 'पंचनमस्कार' ग्रन्थका उल्लेख मिलता है और उसमे लघु सिद्धचक्र, वृहत् सिद्ध चक्र, जैसे कितने ही पाठोंका मंग्रह बतलाया है। हो सकना है कि 'वृहतपंचनमस्कार नामका या तो वही मंग्रह हो पौर या उममे भी बड़ा कोई दूसरा संग्रह तय्यार हमा हो और उसमें पात्रकेमरिस्तोत्रको भी संग्रहीत किया हो। और उसीकी वृत्ति परसे पावकेसरिस्तोत्रको उतारते हुए उसकी वृत्तिका मंगलाचरण इस स्तोत्रकी वृतिके ऊपर दे दिया गया हो / अथवा इसके दिये जाने में कोई दूसरी ही गड़बड़ हुई हो। पग्नु कुछ भी हो, टीकाका यह मगलपद क्षेपक' जान पड़ता है। और इसलिये इससे स्तोत्रक नामपर कोई असर नहीं पड़ता / साप ही, इस संस्करणके अन्त में दिये हए समातिसूचक गद्य. में जो 'विद्यानन्दि'का नाम लगाया गया है बह संशोधक महाशयको कृषि जान पड़ती है।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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