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________________ स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द अभिप्रायोंको अच्छी तरहसे जाननेवाले थे, इसलिये उन्होंने मेरा अच्छी तरह लालन-पालन किया और मष्टसहस्रीके द्वारा मुझे पुष्टि प्रदान की / हे देव,वे(पात्र. केसरी) यदि मुझे न पालते तो आज मैं तुम्हें कैसे देखती ?" इसका अभिप्राय यह है कि प्रकलदेवका बनाया हुमा जो 'अष्टशती' नामक ग्रन्थ है, उसे पढ़कर जनेतर विद्वान् ऋद्ध होगये और वे उसपर प्राक्रमण करनेको तय्यार हुए / यह देखकर पात्रकेसरी स्वामीने 'प्रष्टसहस्री' नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ रचकर उसके अभिप्रायोंकी पुष्टि की। इससे मालूम होता है कि अष्टसहस्रीके बनानेवाले विद्यानन्दि ही पात्रकेसरी हैं। 5. प्रागे जो हूमचका शिलालेख उद्धृत किया गया है, उसके अन्तिम वाक्यसे भी स्पष्ट होता है कि विद्यानन्दि और पात्रकेसरी एक ही थे। ____इन पांच प्रमाग्गोंसे मेरी समझ में यह बात निस्सन्देह हो जाती है कि पात्रकेसरी पोर विद्यानन्दि दोनो एक ही है।" प्रमाणोंकी जाँच इनमेसे तीसरे नम्बरका प्रमाण तो वास्तवमें कोई प्रमाण नही है; क्योंकि इममे कथाकोशान्तर्गत पात्रकेसरीकी जिस कथाका उल्लेख किया गया है उसमें विद्यानन्दकी कहीं गन्ध तक भी नहीं पाई जाती-और तो क्या, विद्यानन्दके नामसे प्रसिद्ध होनेवाले ढेरके ढेर ग्रन्धोमेसे किसी अन्थका नाम भी पात्रकेसरीको कृति रूपसे उसमें उल्लेखित नहीं मिलता; बल्कि पात्रकेसरीकी कृतिरूपसे 'जिनेन्द्रगुगामस्तुति' नाम के एक ग्रन्थका उल्लेख पाया जाता है / मोर यह ग्रन्थ ही 'पात्रकेसरिस्तोत्र' (पात्रकेसरीका रचा हुप्रा स्तोत्र ) कहलाता हैविद्यानन्दस्तोत्र नहीं। इस स्तोत्रका प्रारम्भ जिनेन्द्रगुणसंस्तुति:' पदस होता है-जिनेन्द्र के गुणोंको ही इसमें स्तुति भी है और इसलिये भक्तामर तथा * यया:-कृतोऽयमविध्वसो जिनेन्द्रगुणसस्तुतिः / . सस्तवः परमानन्दात्समस्तमुखदायकः // जिनेन्द्र पुरणसंस्तुतिस्तव मनागपि प्रस्तुता। भवखिलकर्मणा प्रतये परं कारगम् //
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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