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________________ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश प्रमाण-पंचक सबसे पहले मैं अपने पाठकोंको उन प्रमाणों-अथवा, हेतुओं-का परिचय करा देना चाहता हूँ जो प्रेमीजीने अपने उक्त लेख में दिये है और वे इस प्रकार हैं: "विद्यानन्दका नाम पात्रकेसरी भी है। बहुतसे लोगोंका खयाल है कि पात्रकेसरी नामके कोई दूसरे विद्वान् हो गये है; परन्तु नीचे लिखे प्रमाणोंसे विद्यानन्दि और पात्रकेसरी एक ही मालूम होते है 1. ' सम्यक्तप्रकाश' नामक अन्यमें एक जगह लिखा है कि "तथा इलोकवार्तिके विद्यानन्द्यपरनाम पात्रकेसरिस्वामिना यदुक्तं तव लिख्यते -'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनं / न तु सम्यग्दर्शनशब्दनिर्वचनसामदेिव सम्यग्दर्शनस्वरूपनिणंयादशेषतहिप्रतिपत्तिनिवृत्तेः सिद्धत्वातदर्थे तल्लक्षरणवचनं न युक्तिमदेवेति कस्यचिदारेका तामपाकरोनि' / " इसमें श्लोकवातिकके कर्ता विद्यानन्दिको ही पात्रकेमरी बतलाया है। 2. श्रवणबेलगोलके पं० ब्रह्ममूरि गाम्बीके ग्रंथसंग्रहमें जो प्रादिपुराणकी ताडपत्रोंपर लिखित प्रति है उसको टिप्पणीमे पांत्रकेसरीका नामान्तर विद्यानन्दि लिखा है। 3. ब्रह्ममिदनकृत कथाकोपमें जो पात्रकेमरीकी कथा लिखी है उसके विषयमें परम्परागत यही वयाल चला पाता है कि वह विद्यानन्दिकी हो कथा है / 4. वादिचन्दमूरिने अपने ज्ञानसूर्योदय नाटकके चौथे अंकम 'प्रशती' नामक स्त्रीपात्र में 'पुरुद' के प्रति कहलवाया है कि "देव, ततोऽहमुतालिनहृदया श्रीमापात्रकेशग्मुिम्बकमनं गता तेन साक्षात्कतसकलस्यादाभिप्राय लालिता पालिताष्टसहस्रीनया पुष्टि नीता। देव, स यदि नापालयिष्यत् तदा कयं त्वामद्राक्षम् ?" अर्थात्-(जब मैंने एकान्तवादियोप स्याद्वादका स्वरूप कहा, तब वे क्रुद्ध होकर कहने लगे-'इसे पकड़ो ! मारो! जाने न पाये !') "तब हे देव, मैंने भवभीत होकर श्रीमत्तात्रकेसरीके मुखकमलमें प्रवेश किया। वे सम्पूर्णस्यावादके
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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