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________________ स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द एकताके भ्रमका प्रचार बहत वर्ष हए जब महद र पं०नायूरामजी प्रेमीने 'स्याद्वाद-विद्यापति विद्यानन्दि' नामका एक लेख लिखा था और उसे हवें वर्षके जनहितेषी अंक न. में प्रकाशित किया था। यह लेख प्राय: तात्या नेमिनाथ पांगलके मराठी लेखके प्राधार पर, उसे कुछ संशोधित परिवर्तित और परिवर्तित कर के, लिखा गया बा। और उममें यह सिद्ध किया गया था कि 'पात्रकेसरी' और 'विद्यानन्द' दोनों एक ही व्यक्ति है। जिन प्रमारणोंसे यह सिद्ध किया गया था उनकी सत्यता पर विश्वास करते हुए, उस वक्त के प्राय: सभी विद्वान यह मानते आ रहे है कि ये दोनों एक ही व्यक्तिके नामान्तर है--भिन्न नाम है। चुनाच उस वक्तसे भासपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, प्रष्टसहस्री, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, युक्त्यनुगासनटीका, पात्रकेमरिस्तोत्र, श्रीपुरपाश्वनाथस्तोत्र प्रादि जो भी अन्य विद्यानन्द या पात्रकेसरीके नामसे प्रकाशित हुए हैं और जिनके माथमें विद्वानों-द्वारा उनके कर्ताका परिचर दिया गया है उन सबमें पात्रकेसरी और विद्यानन्दको एक घोषित किया गया है-बहुतोंमें प्रेमीजीके लेखका सारांश अथवा संस्कृत अनुवाद तक दिया गया है। डा० शतीशचन्द्र विद्याभूषण -जैसे प्रजन विद्वानोंने भी, बिना किसी विशेष ऊहापोहके, अपने ग्रन्थोंमें दोनोंकी एकताको स्वीकार किया है। इस तरह पर यह विषय विद्वत्समाजमें रूढ-सा हो गया है भोर एक निश्चित विषय समझा जाता है। परन्तु खोज करनेपर मालूम हुमा कि, ऐसा समझना नितान्त भ्रम है। और इसलिये पाज इस भ्रमको स्पष्ट करनेके लिये ही यह लेख सिता बाता है।
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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