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________________ वीरनिर्वाण-संवत्की समालोचनापर विचार ५३ त्रिलोकप्रज्ञप्ति वाले ही हैं और एक उनसे भिन्न है । श्रीवीरसेनाचार्यने 'धवल' में इन तीनोंमतोंको उद्धृत करनेके बाद लिखा है____ "एदेसु तिसु एक्केण होदव्वं, ण तिएणमुवदेसाणसञ्चत्तं अण्णोएणविरोहादो । तदो जाणिय वत्तव्यं ।” अर्थात्-इन तीनोंमेंसे एक ही कथन ठीक होना चाहिये, तीनों कथन सच्चे नहीं हो सकते; क्योंकि तीनोंमें परस्पर विरोध है । अतः जान करके-अनुसंधान करके-वर्तना चाहिये। इस प्राचार्यवाक्यसे भी स्पष्ट है कि पुरातन होनेसे ही कोई कथन सञ्चा तथा मान्य नहीं हो जाता। उसमें भूल तथा गलतीका होना संभव है,और इसीसे अनुसन्धान पूर्वक जांच-पड़ताल करके उसके ग्रहण-त्यागका विधान किया गया है। ऐमी हालतमें शास्त्रीजीका पुरातनोंकी बातें करते हुए एक पक्षका हो रहना और उमे बिना किमी हेतुके ही यथार्थ कह डालना विचार तथा समालोचनाकी कोरी विडम्बना है। ___ यहाँपर में इतना और भी बतला देना चाहता हूँ कि इधर प्रचलित वीरनिर्वाण मंवत्की मान्यताके विषयमे दिगम्बरों और श्वेताम्बरोंमें परस्पर कोई मतभेद नहीं है। दोनों ही वीरनिर्वाणमे ६०५ वर्ष ५ महीने बाद शकशालिवाहनके संवत्की उत्पत्ति मानते हैं। धवल-सिद्धान्नमें श्रीवीरसेनाचार्यने श्रीवीरनिर्वाण संवत्को मालूम करनेकी विधि बतलाते हा प्रमागरूपसे जो एक प्राचीन गाथा उद्धृत की है वह इस प्रकार है पंच य मासा पंच य वासा छच्चेव होंति वाससया । सगकालेण सहिया थावेयव्यो तदो रासी । इसमें बतलाया है कि-'शककालकी संख्याके साथ यदि ३०५ वर्ष ५ महीने जोड़ दिये जावें तो वीरजिनेन्द्रके निर्वाणकालकी संख्या आ जाती है । इस गाथाका पूर्वार्ध, जो वीरनिर्वाणसे शककाल (संवत्) की उत्पत्तिके समयको सूचित करता है, श्वेताम्बरोंके 'तित्थोगाली पइन्नय' नामक निम्न गाथाका भी पूर्वाध है, जो वीरनिर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने बाद शकरम्बाका उत्पन्न होना बतलाती है
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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