________________ 612 जनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश सूचित किग है। इसके सिवाय, तितोरण तीका पहला महाधिकार सामान्य. लोक, अधोलोक व ऊबलोकके विविध प्रकारसे निकाले गए घनफलों से भरा पड़ा है जिससे वीरसेन स्वामी की मान्यताकी ही पुष्टि होती है। तिलोयपण्णतीका यह अंश यदि वीरसेनस्वामीके सामने मौजूद होता तो "वे इसका प्रमारणरूपसे उल्लेख नहीं करते यह कभी सम्भव नहीं था।" चूकि वीरसेनने तिलोयपण्णत्तीकी उक्त गाथाएं प्रथका दूसरा अंश धवलामें अपने विचारके अवसरपर प्रमाणरूपसे उपस्थित नहीं किया प्रतः उनके सामने जो तिलोयपणती थी मौर जिसके अनेक प्रमाण उन्होंने धवलामें उद्धत किये है वह वर्तमान निलोयपष्णत्ती नहीं थी-इससे निन्न दूसरी ही तिलोय पणा ती होनी चाहिये, यह निश्चित होता है। (2) "तिलोग्पष्ण तो मे पहने अधिकारकी ७वी गाथामे लेकर ८७वी गाथा नक 81 गाथाओं में मंगल मादि छह मधिकारोंका वर्णन है / यह पूराका पूग वर्णन संतपरूवणाकी धवलाटीकामें पाये हुए वर्णनसे मिलता हुपा है। ये छह अधिकार निलोयपण्णत्तीमें अन्य त्रसे सग्रह किये गये है इस बातका उल्लेख स्वय तिलोयपण्णतीकारने पहले अधिकारको ८५वी गाथा - में किया है तथा धव. लामें इन छह अधिकारोंका वर्णन करते समय जितनी गायाएं या श्लोक उद्धृत किये गये हैं वे सब अन्यत्रमे लिये गये हैं निलीयपनीमे नहीं. इससे मालूम होता है कि सिलोयपण्णतिकार के मामने धवला अवश्य रही है।" (दोनों ग्रन्थोंके कुछ ममान उद्धरणोंकि अनन्तर ) "इसी प्रकार के पनामों उद्धरण दिये जा सकते है जिनमे यह जाना जा सकता है कि एक अन्य लिखते समय दूसरा ग्रन्थ अवश्य सामने रहा है। यहाँ पाठक एक विशेषता पोर देखेंगे कि धवलामें जो गाथा या इलोक अन्यत्र उदधृत है तिलोयपातिमें वे भी मूलमें शामिल कर लिये गए है। इससे तो यही ज्ञात होता है कि तिलोयपात्ति लिखते समय लेखकके सामने धवला अवश्य रही है।" (3) "ज्ञानं प्रमाणमात्मा:' इत्यादि इलोक इन( भट्टाकलंकदेव ) को देखो, तिलोयपष्णति के पहले अधिकारकी गाथाएं 215 से 251 नक। * "मंगलपछि बरसारिणय विविहगंथजुत्तीहि / "