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________________ 602 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश ज्यादा पुष्ट होता है / इसके सिवाय, दो प्रमाण ऐसे उपस्थित किये थे, जिनकी मौजूदगीमें कुन्दकुन्दका समय शक सं० 380 (वि० सं० 515) के बादका किसी तरह भी नही हो सकता / उनमें एक प्रमाण मकसके ताम्रपत्रका था, जो शक० सं० 388 का उत्कीर्ण है और जिसमें देशीगणान्तर्गत कुन्दकुन्दके अन्वय (वंश) में होनेवाले गुरण चन्द्रादि छह भाचार्योका गुरु-शिष्यक्रमसे उल्लेख है / और दूसरा प्रमाण स्वयं कुन्दकुन्दके बोधपाहडको 'सदवियारो हो' नामकी गाथाका था, जिसमें कुन्दकुन्दने अपने को भद्रबाहुका शिष्य मूचित किया है। प्रथम प्रमाणको उपस्थित करते हुए मैने बतलाया था कि 'यदि मोटे रूपसे गुणचन्द्रादि छह प्राचार्योका समय 150 वर्ष ही कल्पना किया जाय, जो उस समयकी आयुकायादिकको स्थितिको देखते हुए अधिक नही कहा जा सकता, तो कुन्दकुन्दके वंशमें होनेवाले गुणचन्द्रका समय शकसंवत् 238 (वि सं० 373) के लगभग ठहरता है / और च कि गुणचन्द्राचार्य कुन्दकुन्दके माक्षात् शिष्य या प्रशिष्य नहीं थे बल्कि कुन्दकुन्द के प्रत्यय ( वंग ) में हुए है और अन्वयके प्रतिष्ठित होने के लिये कमसे कम 50 वर्षका समय मान लेना कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसी हालतमे कुन्दकुन्दका पिछला समय उक्त ताम्रपत्रपरमे 200 (150 + 50 ) वर्ष पूर्वका तो महज ही में हो जाता है। और इमलिये कहना होगा कि कुन्दकुन्दाचार्य यतिवृषभमे 200 वर्ष में भी अधिक पहने हुए है। और दूसरे प्रमारणमें गाथाको उपस्थित करते हुए लिखा था कि इस गाथामें बतलाया है कि जिनेन्द्रने-भगवान् महावीरने-प्रर्थ रूपमे जो कथन किया है वह भाषासूत्रों में गन्दविकारको प्राप्त हुपा है-प्रनेक प्रकारके गन्दोमे गूथा गया हैभद्रबाहुके मुझ मिप्यने उन भाषामूबों परमे उसको उमी म्पमें जाना है और ( जानकर ) कथन किया है।' इसमे गोधपाहुरके कर्ता कुन्दकुन्दाचार्य भद्रबाह के शिष्य मालूम होते हैं / और ये भद्रबाहु श्रुतकेवलीसे भिन्न द्वितीय भद्रबाह जान पड़ते हैं, जिन्हें प्राचीन ग्रन्थकारोंने 'प्राचाराङ्ग' नामक प्रथम अंगके धारियोंमें * सद्दवियारो हमो भासामुसु जंजिणे कहियं / सो तह कहियं णायं सीसेरण य भद्दवाहस्म / / 61 //
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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