________________ 600 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश उसके निम्न अंशसे प्रकट है "पुणो ताओ सुत्तगाहाओ आइरिय-परम्पराए आगच्छमाणाश्रो अज्जमखु-णागहत्थी पत्ताश्रो।" भोर इसलिये इन्द्रनन्दिश्रुतावतारके उक्त कथनकी सत्यतापर कोई भरोसा अथवा विश्वास नहीं किया जा सकता / परन्तु मेरी इन मब बातोंपर प्रेमीजी. ने कोई खास ध्यान दिया मालूम नहीं होता और इसी लिये वे अपने उक्त ग्रन्थगत लेखमें प्रार्यमंक्षु और नागहस्तिको गुणधगचार्यका माक्षात शिश्य मानकर ही चले हैं और इम मानकर चलने में उन्हें यह भी खयाल नही हुमा कि जो इन्द्रनन्दी गुरगघराचार्यके पूर्वाऽपर-प्रन्वयगुरुग्रोंके विषयमें एक जगह अपनी अनभिजना व्यक्त करते हैं वे ही दूसरी जगह उनकी कुछ गिप्य परम्पगका उल्लेख करके अपर ( बादको दोनेवाले ) गुरुपोंके विषयमें अपनी अभिज्ञता जतला रहे हैं, और इस तरह उनके इन दोनों कथनोंमें परम्पर भारी विरोध है / और न कि यतिवषम प्रार्यमंच और नागहस्निके शिष्य थे इमलिये प्रेमीजीने उन्हें गुग्गधगचार्यका ममकालीन अथवा 20-25 वर्ष बादका ही विद्वान, मूचित किया है. पौर माथ ही यह प्रनिरादन किया है. कि 'कुन्दकुन्द ( पधनन्दि ) को दोनों सिद्धान्तोंका जो जान प्राप्त हा उममें यतिवपकी चगिका अन्तर्भाव भले ही न हो फिर भी जिम द्वितीय मिदान कपायाभतको कुन्दकुन्दने प्राप्त किया है उसके कर्ता गुगणधर जब यनिषभ के समकालीन प्रयवा 20-25 वर्ष पहले हम थे नव कुन्दकुन्द भी यतिवृषभ के ममगामयिक बल्कि कुछ पीछे के ही होंगे; क्योंकि उन्हें. दोनों सिद्धान्तों का ज्ञान गुमारिपाटीमें प्रास हुना था। अर्थात् एक दो गुरु उनमे पहले के और मानने होंगे / ' और अन्त में इन्द्रनन्दि-प्रतावतारपर अपना प्राधार व्यक करने और उनके विषय में पानी श्रद्धाको कुछ ढीली करते हुए यहां तक लिम्ब दिया है.--"गर यह कि इन्द्रनन्दिक श्रतावतारके अनुमार पद्मनन्दि (कुन्दकुन्द) का समय यतिवपममे बहन पहले नहीं जा सकता। अब यह बात दूसरी है कि इ नन्दिने जो इनिहाम दिया है,वही गलत हो पौर या ये पअनन्दि कुन्दकुन्दके बादके दूसरे ही प्राचार्य हों और जिस तरह कुन्दकुन्द कोण्डकुण्डपुरके थे उसी तरह पचनन्दि भी कोण्डकुण्डपुरके हों।"