________________ तिलोयपएणत्ती और यतिवृषभ 566 जिस उल्लेखा परसे कुन्दकुन्द (पानन्दी) को यतिवृषभके बादका विद्वान समझा जाता है उसका अभिप्राय 'द्विविध-सिद्धान्त के उल्लेखद्वारा यदि कसायपाहुड (कषायप्राभूत)को उसकी टीकामों-सहित कुन्दकुन्द तक पहुँचाना है तो वह जरूर गलत है और किसी ग़लत सूचना अथवा ग़लतफहमीका परिणाम है। क्योंकि कुन्दकुन्द यतिवृषभसे बहुत पहले हुए है, जिसके कुछ प्रमाण भी दिये थे। साथ ही, यह भी बतलाया था कि यद्यपि इन्द्रनन्दीने यह लिखाहै कि गुणधर और धरसेन प्राचार्यो की गुरु-परम्पराका पूर्वाधारक्रम, उनके वंशका कथन करनेवाले शास्त्रों नथा मुनिजनोंका उस समय प्रभाव होने से, उन्हें मालूम नहीं है; परन्तु दोनों सिद्धान्त ग्रन्योके अवतारका जो कथन दिया है वह भी उन ग्रंथों तथा उनकी टीकानोंको स्वयं देखकर लिखा गया मालूम नहीं होता --सुना-मनाया जान पड़ता है। यही वह है जो उन्होंने प्रार्यमा और नागहस्तिको गुणधराचार्यका साक्षात् शिष्य घोषित कर दिया और लिख दिया है कि गुणधराचार्यने कमायपाहुडकी मूत्रगाथानों को रचकर उन्हें स्वयं ही उनकी व्याख्या करके प्रायमच और नागहस्तिको पढ़ाया था जबकि उनकी टीका जयधवलामें स्पष्ट लिखा है कि 'गुग्ण धराचार्यको उक्त मूत्रगाथाएं प्राचार्यपरम्परामे चली प्राती हुई प्रायमच पोर नागहस्तिको प्राप्त हुई थी-गुणधराचार्यमे उन्हें उनका मोधा (direct) प्रादान-प्रदान नहीं हुप्रा था। जैमा कि "गाथा-वण्चारण सूत्र कपमहन कपायाख्यप्राभनमेव गुणधर-यतिवपभाचारगणाचार्य: / / 156 / / एव द्विविधा द्रव्य-भाव-पुस्तकगन: ममागच्छत् / गुरुपरिपाटया ज्ञात: मिद्धान्तः कोण्डकुन्दपुरे // 16 // श्रीपयनन्दिो-मुनिना, सोऽपि द्वादशसहमपरिमागा:। अन्य-परिकम-कर्ता षट्खण्डाऽऽद्यत्रिखडस्य" // 16 // * 'गुण घर-घरमेनान्वयगुर्गे: पूर्वापरक्रमोऽस्माभि नं ज्ञायते तदन्वय-कपकाऽऽगम-मुनिजनाभावात् / / 150 / / + एवं गाथासूत्राणि पंचदशमहाधिकाराणि / प्रविरव्य व्यावस्यो स नागहस्त्यार्यमंक्षुभ्याम् ||154 //