SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 597
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिलोयपरणाची और यतिवृषभ पावली समयका निर्देश ही नहीं करती और जो करती है उनमें उन दोनोंके समयोंमें परस्पर अन्तर भी पाया जाता है-जैसे प्रार्थमंगुका समय तपागच्यपट्टावलीमें वीरनिर्वाणसे 467 वर्षपर और सिरिदुसमाकाल-समरणसंघथयं की प्रवचरिमें 450 पर बतलाया है / और दोनोंका एक समय तो किसी भी श्वे. पट्टावलीमे उपलब्ध नहीं होता बल्कि दोनोंमें 150 या 130 वर्षके करीबका अन्तराल पाया जाता है; जब कि दिगम्बर-गरम्पराका स्पष्ट उल्लेख दोनोको यतिवषमके गुरुरूपमे प्राय: समकालीन बताया है। ऐसी स्थिति में इवे० पट्टावलियोंको उक्त दोनों भाचार्योक ममयादिविषयमें विश्वासनीय नहीं कहा जा सकता। पोर इमलिए यतिवृषभादिक समयका प्रब गिलोय पणतीके उल्लेखोंपरसे अथवा उसके अन्तःपरीक्षणपरसे ही अनुसंधान करना होगा। तदनुमार ही नीचे उमका यन्न किया जाता है (1) तिलोयपणतीकं अनेक पद्योमे 'मंगादग्णी' तथा 'लांकविनिश्चय' ग्रंथके माथ 'लोकविभाग' नाम के प्रयका भी स्पष्ट उल्लेख पाया जाता है / यथा जलमिहरे विवस्वभी जलगिहिणी जायणा दसमहम्मा / एवं मंगारिणए लायविभाग विरिणहिट // 4 // लायविणिमछय-गथे लायविभागम्मि सम्वसिद्धाणं। श्रीगाहप परिमाणं भागद वि.चार महसमो॥ll यह 'लोकविभाग अन्य उम प्राकृत लोकविभाग ग्रन्थमे भिन्न मालूम नहीं होता, जिसे प्राचीन समय में मरनन्दी प्राचार्य ने लिखा ( रचा ) था, जो कांची राजा सिंहवर्माके राज्यके 20 वर्ष उम ममय जबकि उत्तराषाढ नक्षत्र में शनिश्चर, वृषराशि में वृहस्पति, उ नराफाल्गुनी नक्षत्रमे चन्द्रमा या. शुबल पक्ष या-शकसंवत् 380 में लिखकर पाणराष्ट्र के पाटलिक ग्राममें पूरा किया गया था भौर जिसका उल्लेख मिहमूर के उस सस्कृत लोकविभागकनिम्न पचों देखो, पट्टावलीसमुच्चय' / + सिंहमूपिणा' पदपरमे मिहमूर नामको उपलब्धि होती है --मिहमूरिकी नहीं, जिसके 'मूरि' पदको 'भावार्य पदका वाचक समभकर पं० नाथूरामजी
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy