________________ - - - - 12 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश सम्मत, मयुसिम-सम्प्रदाय-क्रमसे चिरकालागत और शिष्यपरंपरा में प्रचलित तथा प्रशापित समझा है उसे 'पबाइज्जत' 'पकाइम्समारण', उपदेश बतलाया है मोर जो ऐसा नहीं उसे 'अपवाइज्जत' अथवा अपवाइनमाण' नाम दिया है। उल्लेिखित मत-भेदोंमें पायनागहस्तिके अधिकांश उपदेश 'पवाहत' और मार्यमंक्षके 'मपबाइज्जत' बतलाये गये है। इस तरह पतिवृषभ दोनोंका शिष्य. त्व प्राप्त करने के कारण उन सूक्ष्म मतभेदोंकी बातोंसे अवगत थे, यह सहज हीमें जाना जाता है। वीरसेनने यतिवृषभको एक बहुत प्रामाणिक भाचार्यके रूपमें उल्लेखिन किया है और एक प्रसंगपर रागद्वेष-मोहके प्रभावको उनकी बचन-प्रमाणतामें कारण बतलाया है। इन सब बातों से प्राचार्य यसियभका महत्त्व स्वत: ख्यापित हो जाता है। अब देखना यह है कि यतिवृषभ कब हुए है और कब उनकी यह निगोय. पणती बनी है, जिसके वाक्योंको धवनादिक में उड़न करते हुए अनेक स्थानों पर श्रीवीर मेनने उमे 'निलोयरातिसुन' मूबित किया है। यतिवपके गुरुषों में यदि किसीका भी समय मुनिश्चित होता तो इस विषयका कितना ही काम निकल जाना; परन्तु उनका भी ममय मुनिश्चित नही है। श्वेताम्बर पट्टावलियोंमेंसे 'कल्पमूत्रस्यविगवली' और 'पदावलीमागेदार' जगी कितनी ही प्राचीन तथा प्रधान पट्टालियों में नी प्रार्थमा पोर मायनामहस्तिका नाम ही नहीं है, किसी किसी पट्टावली में एकका नाम है तो दूसरेया नहीं और जिनमें दोनोंका नाम है उनमेंम काई दोनों के मध्य में एक पाचायका और कोई एकमे अधिक प्राचार्यों का नामानेस करती है। कोई कोई t"मम्वाइरिय-मम्मको चिरकानमयोनिमा मायकमेणागम्छमागी जा सिस्मारपराव पवाइजर सो पवारजनोधामो नि भण।। प्रपा प्रज मंखुभयवतारण मुवामो स्थाऽपवाहरबमाणो णाम / गणामहरिपबामणाणमुवामा पवाइज्जतो ति धेश्यो।-जयप. प्र.१०४३। "कुदो रणबदे ? एदम्हादो चेव जायसहाइरियमुहकमनविरिणग्गय पिणसुत्तादो। नुषिणमुत्तमम्णहा कि गण होदि ? ण, रागदोममोहाभाषण पमाणनमुवगय-जइससह-त्रयणस्स बसवतपिरोहादो।"-अयम. प्र.१०४६