________________ .:. तिलोथपण्णी और पतिवृषम .. 11 है कि श्रीगुणधराचार्यने कसायपार अपरनाम पेजदोसपाहुडका उपसंहार (संक्षेप) करके जो सूत्रगाथाएँ रची थी वे इन दोनोंको प्राचार्यपरम्परासे प्रास हुई थीं और ये उनके प्रर्यके भले प्रकार जानकार थे, इनसे समीचीन अर्थको सुनकर ही यतिवृषभने, प्रवचन-वात्सल्यमसे प्रेरित होकर उन सत्र-गाथानोंपर चरिणसूत्रोंकी रचना की है। ये दोनों जैनपरम्पराके प्राचीन प्राचार्यों में है और इन्हें दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंने माना है-श्वेताम्बर-सम्प्रदायमें प्रार्यमंक्षको पार्यमंगु नाममे उल्लेखित किया है, मंगु और मध एकार्थक है। धवना -जयपवलामें इन दोनों प्राचार्यों को क्षमाश्रमण' और 'महावाचक' भी लिखा है। जो उनकी महत्ताके द्योतक है इन दोनों प्राचार्योंके सिद्धान्त-विषयक उपदेशोंमें कही कही कुछ मूक्ष्म मनभेद भी रहा है जो वीरसेनको उनके ग्रंथों अथवा गुरुपरम्परामे ज्ञान था. और इसलिये उन्होंने घवला और जयघवला टीकापोंमें उमका उल्लेख किया है। ऐसे जिम उपदेशको उन्होंने सर्वाचार्य __ + 'पुगो तेण युगहर-भडारण गागापवाद-पंचमपुब्व-दसमवत्यु-तदियकसायाहुरमहणव-पाएगा गयोच्छेदभागा वच्छल गरवमिकहियएण एवं पेज्जदोसपाहर मोलमपदमरम्मपरिमाग होतं प्रसिदिमदमेतगाहाहि उपसंहारिदं / पुरणो ताप्रो र मुनगाथा पो पाइरियपरंपराए पागच्छमाणाम्रो प्रजमखुगागहन्योरगं पताप्रो / पुमो नेसि दोहं नि पदपूले प्रसौदिसदगाहाणं गुरगहर महकमनविरिणग्गयाएमत्थं सम्म सोऊण जावमह-महारएरण पवयरणवच्छ नेण सुष्मिण सुतं ।'-अपपवला / कम्मादि ति परिण गोगद्दारे हि भण्णमाणे वे उवएसा होति / जहभणमुस्सटिीएं पमाणपत्वरणा कम्मदिदिपरूवग ति गागहत्यि-समासमणा भरगति / अग्नमंजु-समासमरणा पुरण कम्मट्टिदिरम्बेणे ति भरणंति / एवं दोहि उपएसेहि कम्मट्रिदिपरूवरणा कायव्वा / " "एत्य दुवे उपएसा........."महावाचपागमज्जमखुलवणारणमुबए मेरण मोगरिदे पाउगसमारणं गामा-गोदावेदणीमागां ठिदिसंतकम्म उदि। महावारयाणं गागहत्लि-खवणारणमुपएसेरण मोगे परिणामा-गोदरणीयाण दिदिसंतकम्म मतोमुहत्तपमाण होदि। , .. -षटी. 100 57