________________ 560 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश कहीं कोई भूल हुई हो तो बहुश्रुत मावार्य उसका संशोधन करें। (क) ग्रन्थकार यतिवृषभ और उनका समय ग्रंथमें रचना-काल नहीं दिया और न ग्रंथकारने अपना कोई परिचय ही दिया है-उक्त दूसरी गायापरसे इतना ही ध्वनित होता है कि वे धर्मसूत्रके पाठकोंमें श्रेष्ठ थे और इसलिये ग्रंथकार तथा ग्रंथके समय-सम्बन्धादिमें निश्चितरूपसे कुछ कहना सहज नहीं है / चरिणसूत्रोंको देखने से मालूम होता है कि यतिवृषभ एक अच्छे प्रौढ सूत्रकार ये भोर प्रस्तुत ग्रन्थ जैनशास्त्रों के विषयगे उनके मच्छ विस्तृत अध्ययनको व्यक्त करता है / उनके सामने 'लोकविनिश्चय' 'मगाइणी' (संग्रहणी ? ) पौर 'लोकविभाग (प्राकृत) जैसे कितने ही ऐम प्राचीन ग्रन्थ भी मौजूद थे जो प्राज अपनेको उपलब्ध नहीं है और जिनका उन्होंने अपने इस ग्रन्थमें उल्लेख किया है। उनका यह ग्रन्थ प्रायः प्राचीन ग्रंथोंके माधारपर ही लिखा गया है इसीसे उन्होंने ग्रन्थकी पीठिकाके अन्त में प्रय-रचने की प्रतिज्ञा करते हुए उमके विषयको 'प्रारिय-प्ररणुकमाया (गा० 86) बनलाया है और महाधिकारोंके मंघि-वाक्यों में प्रयुक हा 'पायरियपरंपरागत पदके द्वारा भी उसी बातको पुष्ट किया है। पोर इस तरह यह घोषित किया है कि इस प्रन्यका मून विषय उनका स्वचि-विरचिन नहीं है, किन्तु प्राचार्यपरम्पगके पाधारको लिये हुए है। रही उपलब्ध करणमूत्रोंको बान. वे यदि प्रापके उम करगावरूप' ग्रंथके ही अंग है, जिसकी अधिक मम्भावना है, तब तो कहना ही क्या है? वे सब आपके उस विषयके पाण्डिन्य पोर प्रापकी बद्धिती खूबी तथा उसकी मूक्ष्मताके अच्छे परिचायक है। ___ जयधवलाकी प्रादिमें मगलाचरण करते हुए श्री बीरमेनाचायने यनिवृषमका जो स्मरण किया है वह इस प्रकार है: जो अाजमम्बु-सीमो अंतेवासी विणागहथिस्स / सो वितिसुत्त-कत्ता अवसही में वर देउ / / 8 / / इसमें यतिवृषभको, कमायपाहुउपर लिखे गए उन वृत्ति (परिण) मूबोंका कर्ता बतलाते हुए जिन्हें मायमें लेकर ही जयपवना टोमा लिली गई है, प्रायमंक्षुका शिष्य और नागहस्तिका प्रन्तेवामी बतलाया है, और इमसे यतिवषमके दो गुरुभोंके नाम सामने पाते हैं, जिनके विषय में जलापरसे इतना और जाना जाता