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________________ arwarNi ranirwhy . तिलोयपण्णसी और यतिवृषम चुरिणसरूवं पत्थं करणसरूवपमाण होदिक (1) जंत। असहस्सपमाणं तिलोयपएणत्तिणामाए || 6-76 || . एवं माइरियपरंपरागए तिलोयपण्णत्तीए सिद्धलोयसरूवणिरूवणपण्णत णाम णयमो महाहियारो सम्मत्तो / मग्गप्पमावणटुं पवयण-मत्तिप्पचोदिदेण मया / मणिद गंथप्पवरं मोहंतु बहुमुदाइरिया | E-80 // तिलोयपएणत्तो सम्मत्ता / / इसमें तीन गाथाएं हैं, जिनमें पहली गाथा ग्रन्थक मन्तमंगलको लिये हुए है और उसमें ग्रन्धकार नियुषमाचार्यने 'जदिवसह' पदके द्वारा, श्लेषरूपये अपना नाम भी सूचित किया है / इसका दूमग पोर तोमरा चरण कुछ अशुद्ध जान पड़ते है। दूसरे चरण में 'गुग्ण' के अनन्नर 'हर' और होना चाहिये-देहली की प्रनिमें भी अटिन अंगके संकेतपूर्वक उसे हाशियेपर दिया है, जिससे यह उन गुणधगचायंका भी वाचक हो जाता है जिनके 'कसायपाहुड' मिटान्न प्रत्यपर यनिवृषभने चम्गिमूत्रोंकी रचना की है और उस 'हर' शब्दके संयोगमे 'पार्यागीनि छदके लक्षणानुरूप दूसरे चरणमें भी 20 मात्राएं हो जाती है जैमी कि वे चनुथं चरण में पाई जाती है। तीसरे चरणका पाठ 10 नाथूरामजी प्रेमीने पहले यही 'द गण परिमवमहं'प्रकट किया था, जो देहलोकी प्रतिमें भी पाया जाना है और उसका संस्कृतका 'दृष्ट्वा परिषवृषभ' दिया था, जिसका अर्थ होता है - परिणाम घंष्ठ परिपद ( सभा) को देखकर / परन्तु परिस' का पर्व कोषौ परिषद नही मिलता किन्तु ‘म्पर्श' उपलब्ध होता है, परिषदका वाचक परिमा' शब्द स्त्रीलिग है। शायद यह देखकर अथवा दूसरे किसी कारण वा, जिसकी कोई सूचना नहीं की गई, हाल में उन्होंने .श्लेषरूपसे नाम-मूचनक पति अनेक ग्रन्थो में पाई जानी है। देखो, मोम्मटमार, नीतिवाक्यामृत पौर प्रभाचन्द्रादिक ग्रन्थ / देखो, जनहितेषी भाग 13 अंक 12 10 528 / +देखो, 'पाइमसहमहम्णव'कोश /
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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