________________ 26 तिलोयपण्णत्ती और यतिवृषभ तिलोयपप्णत्ती (त्रिलोकप्राप्ति ) तीन लोबके स्वरूप, माकार, प्रकार, विस्तार, क्षेत्रफल भोर युग-परिवर्तनादि-विश्यका निरूपक एक महत्वका प्रसिद्ध प्राचीन ग्रन्थ है-प्रसंगोपात जैनसिद्धान्त, पुराण मोर भारतीय इतिहासविषयको भी कितनी ही बातों एवं सामग्रोको यह साथमें लिये हुए है। इसमें 1. सामान्यजगत्स्वरूप, 2. नारकलोक, 3. भवनवामिलोक, 4. मनुष्यलोक. 5. तिर्यक्लोक, 6. अन्तरलोक, 7. ज्योतिर्मोक, 8. सुरमोक और 6. मिद्ध. लोक नामके हैं महाधिकार है। प्रवागार प्रधिकारों की संख्या 180 केसगभग है. क्योंकि द्वितीयादि महाधिकारोंके प्रवान्तर प्रधिकार कमश: 15, 24. 16.:. 17, 17, 21, 5 ऐसे 131 है और बोये महाधिकारके जम्बूद्वीप, धानको खण्डद्वीप और पुछारदीप नामके प्रवान्नर अधिकारों में प्रत्येक फिर सोलासोलह (1643%D48 ) प्रवान्तर अधिकार है / इस तरह यह पन्य अपन विषयके बहुत विस्तारको लिये हुए है। इसका प्रारंभ निम्न मंगलगापाम होना है, जिसमें सिद्धि-कामनाके साथ सिमोंका स्मरण किरा गया है: अट्टविह-कम्म-वियला णिद्वियकामा पण?-संसारा। दिटु-सयलटु-सारा सिदा सिद्धि मम दिसतु // 1 // अन्यका अन्तिम भाग इस प्रकार है: पणमह जिणवरवसहं गणहरयसह तहेव गुण[ ] सह / दहण परिसवसह (?) जरियसह धम्ममुत्पाउगवसई -8||