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________________ ....... सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन .. .. कतिपय द्वानिक्षिकामों के कर्ता सिमेन इन सन्मतिकार सिद्धसेनसे भिन्न तथा पूर्ववर्ती दूसरे ही सिद्धसेन है, जैसा कि पहले व्यक्त किया जा चुका है, और सम्भवत: वे ही उज्जयिनीके महाकालमन्दिरवाली घटनाके नायक जान पड़ते हैं। हो सकता है कि वे गुरूसे श्वेताम्बर-सम्प्रदायमें ही दीक्षित हुए हो, परन्तु श्वेताम्बर भागमोंको संस्कृतमें कर देने का विचारमात्र प्रकट करनेपर जब उन्हें गरह वर्ष के लिये संघबाह्य करने जैसा कठोर दण्ड दिया गया हो तब वे सविशेषरूपसे दिसम्बर साधुपोंके सम्पर्क में पाए हों, उनके प्रभावसे प्रभावित तथा उनके संस्कारों एवं विचागेको ग्रहण करने में प्रवृत्त हुए हों-खासकर समन्तभद्रस्वामीके जीवनवृतान्नों और उनके साहित्यका उनपर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा हो पौर इसी लिये वे उन्ही-जैसे स्तुन्यादिक कार्योंके करने में दत्तचित्त __इस प्रभावादिकी पुष्टि पहनी दाविशिकाम भने प्रकार होती है, उिसमें "अनेन सर्वज्ञपरीक्षणक्षमाम्वयि प्रसादादयमामवाः स्थिताः / " जैसे वाक्योंके द्वारा समन्तभदका सवंज-प्राप्त के समयं परीक्षा प्रादिके रूपमे गौरवपूर्ण पदों में उल्लेख ही नहीं किया गया बल्कि अन्नके निम्न पद्यमें वही 'सर्वजगनके युगपत् साक्षात्कारी सवंशकी बात उठाकर उसकी गुण-कथामें समन्तभद्रके अनुकरणको स्पष्ट मूचना भी की गई है -- लिखा है कि इस सर्वजद्वारको समीक्षा करके हम भी पापको गुग्ग-कयाके करनेमे उत्सुक हुए है - "जगन्नै कायम्थं युगपदविनाऽनन्तविपयं यहेनत्प्रत्यक्ष तव नच भवान्कस्यचिदपि / बोनेवाऽचिन्त्य-प्रकृनिरम-मिद्धम्नु विदुपां सनीयतदद्वार नयगुण-कोन्का वयमपि // 32 / / साथ ही यह भी संभव है कि उन्होके सम्पर्क एवं संस्कारों में रहते हुए हो मिसेनसे उबपिनीकी व महाकालमन्दिरवाली घटना बन पड़ी हो, जिससे उनका प्रभाव पारों ओर फैन गया हो और उन्हें भारी राजाश्रय प्रास हुमा हो / यह सब देखकर ही देतामारसंघको पानी मूल मालुम पड़ी हो, उसने प्रायश्चित्तकोष प्राषिको रद्द कर दिया हो मोर सिडसेनको अपना ही साधु
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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