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________________ सम्मतिसूत्र पौर सिद्धसेन बसलाकर उनके सिद्धान्तोंको प्रमान्य बतलाया है।' "सिडसेनगणीने 'एकादीनि माज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्म:' (1-31) इस सूत्रकी व्याख्या दिवाकरजीके विचारभेदके ऊपर अपने ठीक वागण चलाये है / गणीजीके कुछ वाक्य देखिये --"यद्यपि केचित्पण्डितमन्या:: सूत्रान्यथाकारमर्थमाचक्षते तर्कबलानुविद्धबुद्धयो वारंवारेणोपयोगो नास्ति, तत्तु न प्रमाणयाम., यत प्राम्नाये भूयांसि सूत्राणि वारंवारेरणोपयोग प्रतिपादयन्ति / " दिगम्बर साहित्य में ऐसा एक भी उल्लेख नहीं जिसमें सन्मतिमूत्रके कर्ता सिद्ध सेनके प्रति अनादर अथवा निरस्कारका भाव व्यक्त किया गया होसत्र उन्हें बड़े ही गौरवके माप स्मरण किया गया है. जैसा कि ऊपर उद्धृत हरिवंशपुराणादिके कुछ वाक्यों में प्रकट है / प्रकलंकदेवने उनके प्रभेदवादके प्रति अपना मतभेद व्यस्त करते हग किमी भी कटु शन्दका प्रयोग नहीं किया, बल्कि बरे ही पादरके माथ लिखा है कि "यथा हि असद्भूनमनुपदिष्टं च जानानि तथा पश्यति किमत्र भवतो हीयते"-अर्थात् केवनी / सबंक) जिस प्रकार सदभूत पोर अनुपदिष्टको जानता है उसी प्रकार जनको देखना भी है हमके मानने में पापको क्या हानि होती है ?-वास्तविक बाततो प्राय: ज्योको स्यों एक ही रहती है। प्रकलंकदेवके प्रधान टीकाकार मावायं श्रीमनन्तत्रीय प्रोने मितिविनिदचयकी टीकामे 'असिद्धः सिद्धसेनस्य विरुदो देवनन्दिनः / द्वधा ममन्तभद्रभ्य हेतुरकान्तसाधने / ' इस कारिकाकी व्याख्या करते हर मिसनका महान भादरसूचक 'भगवान' बल के साथ उल्लेखित किया है और जब उनके किसी स्वयूप्पने-स्वसम्प्रदायके विद्वानने-यह भापति की कि सिटसेनने एकान्नके साधनमें प्रयुक्त हेतुको कहीं भी पसिब नही बनलाया है प्रतः एकानके माधनमे प्रयुन हेतु सिटसेन. की दृष्टि पसिद्ध है यह बबन का न होकर प्रयुक्त है. तब उन्होंने यह कहते हुए कि क्या उसने कभी सन्मनिमूत्रका यह वाक्य नहीं सुना है, 'चे संतवायदोम' इत्यादि कारिका (3.50) को उदषत किया है और उसके अरा एकान्त-साधनमें प्रयुक्त हेतुको सिडमेनकी दृष्टिमें 'पसिद्ध' प्रतिपादन करना सन्निहित बसलाकर उसका समाधान किया है। पवा:
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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