________________ 577 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश ही नहीं है / दुःषमाकालश्रमणसंघकी प्रवचरिमें, जो विक्रमकी हवीं शताब्दीसे बादकी रचना है, सिद्धसेनका नाम जरूर है किन्तु उन्हें 'दिवाकर' न लिखकर 'प्रभावक' लिखा है और साथ ही धर्माचार्यका शिष्य सूचित किया हैवृद्धवादीका नहीं "अत्रान्तरे धर्माचार्य-शिष्य-श्रीसिद्धसेन-प्रभावकः // " दूसरी विक्रमकी १५वीं शताब्दी प्रादिकी बनी हुई पट्टावलियों में भी कितनी ही पट्टावलियां ऐसी हैं जिनमें सिद्धसेनका नाम नहीं है-जैसे कि गुरुपर्वक्रमवर्णन, तपागच्छपट्टावलीसूत्र, महावीरपट्टपरम्परा, युगप्रधानसम्बन्ध ( लोकप्रकाश ) और सूरिपरम्परा / हाँ, तपागच्छपट्टावलीसूत्रको वृत्तिमें, जो विक्रमको १७वीं शताब्दी ( सं० 1648 ) की रचना है, सिद सेनका 'दिवाकर' विशेषणके साथ उल्लेख जरूर पाया जाता है / यह उल्लेख मूल पट्टावलीकी ५वी गाथाकी व्याख्या करते हुए पट्टाचार्य इन्द्रदिन्नसूरिके अनन्तर और दिन्नमूरिके पूर्वको व्याख्यामें स्थित है (r) / इन्द्रदिन्नसूरिको सुस्थित और सुप्रतिबुद्धके पट्टपर दसवाँ पट्टाचार्य बतलाने के बाद 'अत्रान्तरे" शब्दोके साथ कालकसूरि भायखपुट्टाचार्य और मार्यमंगुका नामोल्लेख समयनिर्देशके साथ किया गया है और फिर लिखा है. "वृद्धवादी पादलिपश्चात्र / तथा सिद्धसेनदिवाकरो येनोजयिन्यां महाकाल-प्रासाद-रुद्रलिंगस्फोटनं विधाय कल्याणमन्दिरस्तवेन श्रीपार्श्वनाथ बिम्बं प्रकटीकृतं, श्रीविक्रमादित्यश्च प्रतिबोधितस्तद्राज्यं तु श्रीवीरसप्ततिवर्षशतचतुष्टये 470 संजातं / " इसमे वृद्धवादी और पादलिप्तके बाद सिरसेनदिवाकरका नामोल्लेख करते हुए उन्हें उज्जयिनी में महाकालमन्दिरके रुद्रलिगका कल्याणमन्दिरस्तोत्रके द्वारा स्फोटन करके श्रीपार्श्वनाथके बिम्बको प्रकट करनेवाला और विक्रमादित्यराजाको प्रतिबोधित करनेवाला लिखा है / साथ ही विक्रमादित्यका राज्य वीरनिर्वाणसे 470 वर्ष बाद हुमा निर्दिष्ट किया है, और इस तरह सिद्धसेन दिवाकरको विक्रमको प्रथम शताब्दीका विद्वान् बतलाया है, जो कि उल्लेखित विक्रमादित्य 7 देखो, मुनि दर्शनविनय द्वारा सम्पादित 'पट्टाक्लीसमुचय' प्रथम भाग /