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________________ सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन ~ उल्लेखित किया है। ये सब श्रद्धांजलि-मय दिगम्बर उल्लेख भी सन्मतिकारसिद्धसेनसे सम्बन्ध रखते है, जो खास तौरपर सैद्धान्तिक थे और जिनके इस सैद्धान्तिकत्वका अच्छा माभास ग्रन्थके अन्तिम काण्डकी उन गाथाओं (61 प्रादि ) से भी मिलता है जो श्रतधर-शब्दसन्तुष्टों, भक्तसिद्धान्तज्ञों और शिष्यगणपरिवृत-बहुश्र तमन्योंकी पालोचनाको लिए हुए हैं। श्वेताम्बर-सम्प्रदायमें प्राचार्य सिद्धसेन प्राय: 'दिवाकर' विशेषण अथवा उपपद ( उपनाम ) के साथ प्रसिद्धिको प्राप्त है। उनके लिये इस विशेषण-पदके प्रयोगका उल्लेख श्वेताम्बर-साहित्यमें सबसे पहले हरिभद्रसूरिके 'पञ्चवस्तु' ग्रन्थमें देखनेको मिलता है, जिसमें उन्हें दुःषमाकालरूप रात्रिके लिये दिवाकर (मूर्य ) के समान होनेसे 'दिवाकर' की पाख्याको प्राप्त हुए लिखा है / इसके बादसे ही यह विशेषरण उधर प्रचारमें पाया जान पड़ता है; क्योंकि श्वेताम्बर चूरिणयों तथा मल्लवादीके नयचक्र-जैसे प्राचीन ग्रन्थो में जहाँ सिद्धसेनका नामो. ल्लेख है वहीं उनके साथ में 'दिवाकर' विशेपरणका प्रयोग नहीं पाया जाता है। हरिभद्रके बाद विक्रमकी ११वीं शताब्दीके विद्वान् अभयदेवसूरिने सन्मतिटीकाके प्रारम्भमें उसे उसी दु:षमाकालरात्रिके अन्धकारको दूर करनेवालेके अर्थ में अपनाया है / श्वेताम्बर-सम्प्रदायकी पट्टावलियोंमें विक्रमकी छठी शताब्दी मादिकी जो प्राचीन पट्टावलियां है-जैसे कल्पसूत्रस्थविरावली (थेरावली ), नन्दीसूत्रपट्टावली, दुःपमाकाल-श्रमणसंघस्तव-उनमे तो सिद्धसेनका कहीं कोई नामोल्लेख + पायरियसिद्ध सेणेण सम्मइए पइट्टिप्रजमेणं / दूसमरिणसा-दिवागर-कप्पन्तरणमो तदक्खेरणं / / 1048 / देखो, सन्मतिसूत्रको गुजराती प्रस्तावना पृ० 36, 37 पर निशीथचूणि ( उद्देश 4 ) मोर दशारिणके उल्लेख तथा पिछले समय-सम्बन्धी प्रकरणमे उद्धृत नयचक्रके उल्लेख / * "इति मन्वान प्राचार्यों दुषमाऽरसमाश्यामासमयोद्भतसमस्तजनाहार्दसन्तमसविध्वंसकत्वेनावाप्सयथार्थाभिधान: सिद्धसेनदिवाकरः तदुपा ग्भूतसम्मत्यास्यप्रकरणकरणे प्रवर्तमानः..............."स्तवाभिधायिकां गाथामाह।"
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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