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________________ 568. जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश वचन-प्रभावको अङ्कित किये रहें / यहाँ सिद्धसेनका कविरूपमें स्मरण किया गया है और उसीमें उनके वादित्वगुणको भी समाविष्ट किया गया है। प्राचीन समयमें कवि साधारण कविता-शायरी करनेवालोको नहीं कहते थे बल्कि उस प्रतिभाशाली विद्वान्को कहते थे जो नये नये सन्दर्भ, नई-नई मौलिक रचनाएं तय्यार करने में समर्थ हो अथवा प्रतिभा ही जिसका उज्जीवन हो, जो नाना वर्णनापोंमें निपुण हो, कृती हो, नाना अभ्यासोंमें कुगाग्रबुद्धि हो और व्युत्पत्तिमान (लौकिक व्यवहारोंमें कुशल) हो / दूसरे पद्यमें सिद्धसेनको केशरी सिहको उपमा देते हुए उसके माथ जो 'नय-केशरः' और विकल्प-नखराकुरः' जैसे विशेषण लगाये गए हैं उनके द्वारा खास तौरपर सन्मतिसूत्र लक्षित किया गया है. जिसमें नयोंका ही मुख्यत: विवेचन है और अनेक विकल्पों द्वारा प्रवादियोंके मन्तव्योंमान्यसिद्धान्तोंका विदारगा (निरमन) किया गया है। इसी सन्मतिमूत्रका जिनमेनने जयधवलामें और उनके गुरु वीरमेनन धवलामें उल्लेख किया है और उसके साथ घटित किये जानेवाले विरोधका परिहार करते हुए उमे अपना एक मान्य ग्रन्थ प्रकट किया है; जैसा कि इन सिद्धान्त ग्रन्थोंके उन वाक्योंमे प्रगट है जो इस लेखके प्रारम्भिक फुटनोटमे उद्धृत किये जा चुके हैं। नियमसारको टीकामें पद्मप्रभ मलधारिदेवने सिद्धान्तोद श्रीधवं सिद्धसेनं... ...वन्दे' वाक्यके द्वारा मिद्धमेनकी वन्दना करते हुए उन्हें 'सिद्धान्तकी जानकारी एवं प्रतिपादनकौशलरूप उच्चश्रीके स्वामी' मूचित किया है / प्रतापकीतिने प्राचार्यपूजाके प्रारम्भमें दी हुई गुर्वावलीमें "सिद्धान्तपायोनिधिलब्धपार: श्रीसिद्धसेनाऽपि गणस्य सारः' इस वाक्यके द्वारा सिद्ध सेनको 'मिद्धान्तसागरके पारगामी' और 'गणके सारभूत' बतलाया है / मुनिकनकामरने, 'करकंडचरिउ' में, सिद्धसेनको समन्तभद्र तथा प्रकल डूदेवके समकक्ष 'श्रुतजसके समुद्र' रूपमे "कविनूतनसन्दर्भः'। "प्रतिभोज्जीवनो नाना-वरणंना-निपुणः कविः। नानाऽभ्यास-कुशाग्रीयमतिव्यत्पत्तिमान् कविः / / " -प्रलकारचिन्तामणि * "तो सिद्धसेण सुसमन्तभद्द प्रकलंकदेव सुमजलसमुह / " 0 2
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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