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________________ 564 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश से उल्लेखित किया है और उनके समयका पट्टाचार्यरुप में प्रारम्भ वीरनिर्वाणसंवत् 643 अर्थात् वि० सं० 173 से बतलाया है। साथ ही यह भी उल्लेखित किया है कि उनके पट्टशिष्यने वीर नि० स० 665 (वि० सं० 225) में एक प्रतिष्ठा कराई है, जिससे उनके समयकी उत्तरावधि विक्रमकी तीसरी शताब्दी के प्रथमचरण तक पहुँच जाती है / इसमे समय-सम्बन्धी दोनों सम्प्रदायोंका कथन मिल जाता है और प्रायः एक ही ठहरता है। __ ऐसी वस्तुस्थितिमें पं० सुखलालजीका अपने एक दूसरे लेख 'प्रतिभामूर्ति सिद्धसेनदिवाकर' में, जो कि 'भारतीयविद्या' के उसी अङ्क (तृतीय भाग) में प्रकाशित हुया है, इन तीनों ग्रन्थों के कर्ता तीन सिद्धमेनोंको एक ही सिद्धन बतलाते हुए यह कहना कि 'यही सिद्धसेन दिवाकर "प्रादि जैनतार्किक"-"जैन परम्परामें तर्कविद्याका और तर्कप्रधान संस्कृत वाङमयका प्रादिप्रणेता". "प्रादि जैनकवि", "आदि जैनस्तुतिकार", "प्राद्य जैनवादी / " और "प्राद्य जैनदार्शनिक" है' क्या अर्थ रखता है और कैसे सङ्गत हो सकता है ? इसे विज्ञ साठक स्वयं समझ सकते है / सिद्धसेनके व्यक्तित्व और इन सब विषयों में उनको विद्यायोग्यता एवं प्रतिभाके प्रति बहुमान रखते हुए भी स्वामी समन्तभद्रकी पूर्वस्थिति और उन 6 अद्वितीय-अपूर्व साहित्यको पहले से मौजूद जी मे मुझे इन सब उद्गारोंका कुछ भी मूल्य मालूम नहीं होता और न पं. मुखलालजीके इन कथनों में कोई सार ही जान पड़ता है कि-(क) 'सिद्धमनका सन्मति प्रकरण जैनदृष्टि और जैनमन्तव्योंको तर्कशैलीसे स्पष्ट करने तथा स्थापित करनेवाला जं वाङ्मयमें सर्वप्रथम ग्रन्थ है' तथा (ख) 'स्वामी समन्तभद्रका स्वयम्भूस्तोत्र पोर युक्त यनुशासन नामक ये दो दार्शनिक स्तुतियां सिद्ध सेनकी कृतियोंका अनुकरण है।' तर्कादि-विषयोंमें समन्तभद्रकी योग्यता और प्रतिभा किसीमे भी कम नही किन्तु * कुछ पट्टावलियों में यह समय वी०नि० सं० 565 अथवा विक्रमसवत् 125 दिया है जो किसी गलतीका परिणाम है और मुनि कल्याणविजयने अपने द्वारा सम्पादित 'तपागच्छपट्टावली में उसके मुधारको सूचना की है। * देखो, मुनि श्रीकल्याणविजयजीके द्वारा सम्पादित 'तपागच्चपट्टावली' पृ० 76-81.
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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