SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 564
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 560. जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश समयमें हुए हैं और उनके एक शिष्य वचनन्दीने विक्रम संवत् 526 में द्राविड. संघको स्थापना की है, जिसका उल्लेख देवसेनसूरिके दर्शनसार (वि० सं०६६०) ग्रन्थमें मिलता है / प्रतः सन्मतिकार सिद्धसेन पूज्यपादके उत्तरवर्ती है, पूज्यपादके उत्तरवर्ती होनेसे समन्तभद्रके भी उत्तरवर्ती है, ऐसा सिद्ध होता है / और इसलिये समन्तभद्रके स्वयम्भूस्तोत्र तथा प्राप्तमीमांसा ( देवागम ) नामक दो ग्रन्थोंकी सिद्धसेनीय सन्मतिसूत्रके साथ तुलना करके पं० सुखलालजीने दोनों भाचार्योंके इन ग्रन्यों में जिस 'वस्तुगत पुष्कल साम्य' की सूचना सन्मतिकी प्रस्तावना ( पृ० 66 ) में की है उसके लिये सन्मतिसूत्रको अधिकांशमें सामन्तभद्रीय ग्रन्थोंके प्रभावादिका प्राभारी समझना चाहिये / भने कान्त-शामनके जिस स्वरूप प्रदर्शन एवं गौरव-स्यापनकी प्रोर ममन्तभद्रका प्रधान लक्ष्य रहा है उसी. को सिद्ध सेनने भी अपने ढंगसे अपनाया है। साथ ही, मामान्य-विशेष-मातृक नयोंके सर्वथा-प्रसर्वथा, सापेक्ष-निरपेक्ष और सम्यक-मिथ्यादि-स्वरूपविषयक समन्तभद्रके मौलिक निर्देशोंको भी मात्मसात् किया है / सन्मतिका कोई-कोई कथन समन्तभद्रके कथनसे कुछ मतभेद अथवा उसमें कुछ वृद्धि या विशेष प्रायोजनको भी साथमें लिये हुए जान पड़ता है, जिसका एक नमूना इस प्रकार है दव्वं खित्तं कालं भावं पज्जाय-देस-संजोगे। भेदं च पडुनच समा भावारणं पएणवणपज्जा // 3.60 // इस गाथामें बतलाया है कि पदार्थोकी प्रापरणा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, पर्याय, देश, संयोग और भेदको प्राश्रित कर के ठीक होनी है;' जब कि समन्तभद्रने "सदेव सर्व को नेच्छेत म्वरूपादिचतुष्टयात्" जमे वाक्योंके द्वारा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इस चतुष्टयको ही पदार्थप्ररूपरणका मुख्य साधन बतलाया है / इससे यह साफ जाना जाता है कि समन्तभद्रके उक्त चतुष्टयमें सिद्ध मेनने * "सिरिपुज्जपादसीसो दाविडसंघस्स कारगो दुट्ठो। णामेण वज्जणंदी पाहुडवेदी महासतो / / 24 // पंचसए छवीसे विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स / दक्षिणमहराजादो दाविडसंघो महामोहो // 25 // "
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy