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________________ 455 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश नयचक्रके उक्त विशेष परिचयसे यह भी मालूम होता है कि उस ग्रन्थ में सिद्धसेन नामके साथ जो भी उल्लेख मिलते हैं उनमें सिद्धसेन को 'प्राचार्य' और 'सूरि' जैसे पदोंके साथ तो उल्लेखित किया है परन्तु 'दिवाकर' पदके साथ कहीं भी उल्लेखित नहीं किया है, तभी मुनि श्रीजम्बूविजय जी की यह लिखने में प्रवृत्ति हुई है कि "प्रा सिद्व मेनसूरि सिद्वसेनदिवाकरज संभवत: होवा जोइये" अर्थात् यह सिद्धसेनसरि सम्भवतः सिद्ध पेनदिवाकर ही होने चाहिये-भले ही दिवाकर नामके माथ वे उल्नेखिन नहीं मिलते / उनका यह लिखना उनकी धारणा और भावनाका ही प्रतीक कहा जा सकता है; क्योंकि ' होना चाहिये' का कोई कारण साथमें व्यक्त नहीं किया गया। पं०सुखलालजीने अपने उक्त प्रमाणमें इन सिद्धसेनको 'दिवाकर' नामसे ही उल्लेम्बित किया है, जो कि वस्तुस्थितिका बडा ही गलत निरूपण है 'नोप अनेक भूल-भ्रान्तियोंको जन्म देनेवाला है-किसी विषयको विचारके लिये प्रस्तुत करनेवाले निष्पक्ष विद्वानोंके द्वारा अपनी प्रयोजनादि-सिद्धि के लिये वस्तुस्थितिका ऐमा गलन चित्रण नहीं होना चाहिये / हाँ, उक्त परिचयमे यह भी मालूम होता है कि सिद्धसेन नामके माथ जो उल्लेख मिल रहे हैं उनमेंसे कोई भी उल्लेख सिद्ध मेनदिवाकरके नामपर चढे हुए उपलब्ध ग्रन्थोंमेंसे किसी भी नहीं मिलता है। नमूनेके तौरपर जो दो उल्लेख परिचयमें उद्धृत किये गये हैं उनका विषय प्रायः गन्नशास्त्र (व्याकरण ) तथा शब्दनयादिसे सम्बन्ध रखता हुमा जान पड़ता है। इससे भी सिद्ध मेनके उन उल्लेखोंको दिवाकरके उल्लेख बतलाना व्यथं ठहरना है। रही द्वितीय प्रमाणकी बात, उससे केवल इतना ही सिद्ध होता है कि तीसरी और नवमी द्वात्रिशिकाके का जो मिद्धमेन है वे पूज्यपाद देवनन्दीम पहले हुए है-उनका समय विक्रमकी पांचवीं शताब्दी भी हो सकता है। इसमें अधिक यह सिद्ध नहीं होता कि सन्मतिसूत्रके कर्ता सिद्धसेन भी पूज्यपाद देव * "तथा च प्राचार्यसिद्धसेन पाह“यत्र ह्यर्थों वाचं व्यभिचरति न (ना) भिधानं तत् // " (वि० 277) "प्रस्ति-भवति-विद्यति-वर्ततय: सन्निपातषष्ठा: सतार्था इत्यविशेषणोक्तस्वात् सिद्धसेनसूरिणा।" (वि. 166 )
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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