________________ 52 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशन प्रकाश (वि० सं० 657 से 707) तक माना जाता है; क्योंकि इत्सिङ्गने जब सन् 661 में अपना यात्रावृत्तान्त लिखा तब भर्तृहरिका देहावसान हुए 40 वर्ष बीत चुके थे। और वह उस समयका प्रतिद्ध वैयाकरण था / ऐसी हातमें भी मल्लवादी जिनभद्रसे पूर्ववर्ती नही कहे जा सकते। उक्त समयादिककी दृष्टि से वे विक्रमकी प्रायः पाठवी-नवमी शताब्दीके विद्वान् हो सकते हैं और तब उनका व्यक्तित्व न्यायबिन्दुकी धर्मोत्तर -टीकापर टिप्पण लिखनेवाले मल्लवादीके साथ एक भी हो सकता है / इस टिप्पणमें मल्लवादीने अनेक स्थानोंपर न्यायबिन्दुकी विनीतदेव-कृत-टीकाका उल्लेख किया है और इस विनीतदेवका समय राहुलसांकृत्यायनने, वादन्यायकी प्रस्तावनामें, धर्मकीनिके उत्तराधिकारियोंकी एक तिब्बती सूचीपरसे ई. सन् 705 से 800 (वि० म० ८५७)तक निश्चित किया है। __इस सारी वस्तुस्थितिको ध्यान में रखते हुए ऐसा जान पड़ता है कि विक्रमकी १४वी शताब्दीके विद्वान् प्रभाचन्द्रन अपने प्रभावकचरितके विजर्यासहसूरि. प्रबन्ध बौद्धों और उनके व्यन्तरोंको वादमें जीतनेका जो समय मल्लवादीका वीरवत्सरसे 884 वर्ष बादका अर्थात् विक्रम सं० 414 दिया है / और जिसके कारण ही उन्हें श्वेताम्बर समाजमें इतना प्राचीन माना जाता है तथा मुनि जिनविजयने भी जिसका एकवार पक्ष लिया है उसके उल्लेखमें जरूर कुछ भूल हुई है / पं० सुखलालजीने भी उस भूलको महसूस किया है, तभी उसमें प्रायः 100 वर्षको वृद्धि करके उसे विक्रमकी छठी शताब्दीका पूर्वाधं (वि० सं० 550 ) तक मान लेनेकी बात अपने इस प्रथम प्रमाणमें कही है। डा० पी० एल० वैद्य एम० ए० ने न्यायावतारकी प्रस्तावनामें, इस भूल अथवा * बौद्धाचार्य धर्मोत्तरका समय पं० राहुलसांकृत्यायनने वादन्यायको प्रस्तावनामें ई० स० 725 से 750, (वि० सं० 782 मे 807) तक व्यक्त किया है। श्रीवीरवत्सरादथ शताष्टके चतुरशीति-संयुक्ते / जिग्ये स मल्लवादी बौद्धांस्तव्यन्तरांश्चाऽपि / / 83 // +देखो, जैनसाहित्यसंशोधक भाग 2 /