________________ सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन किया गया है जो भद्रबाहु-श्रुतकेवलीके बहुत कुछ बाद हुए है-किसी-किसी घटनाका समय तक भी साथमें दिया है; जैसे निह्नवोंकी क्रमश: उत्पत्तिका समय वीरनिर्वाणसे 60 वर्ष बाद तकका बनलाया है। ये सब बातें और इसी प्रकारकी दूसरी बातें भी नियुक्तिकार भद्रबाहको श्रुतकेवली बतलानेके विरुद्ध पड़ी है-भद्रबाहुश्रतकेवली-द्वारा उनका उस प्रकारसे उल्लेख तथा निरूपण किसी तरह भी नहीं बनता। इस विषयका सप्रमाण विशद एवं विस्तृत विवेचन मुनि पुण्यविजयजीने प्राजमे कोई सात वर्ष पहले अपने 'छेदमूत्रकार और नियुक्तिकार' नामके उस गुजराती लेखमें किया है जो 'महावीर-जनविद्यालय-रजतमहोत्सव-ग्रन्थ में मुद्रित है 8 . साथ ही, यह भी बतलाया है कि 'तत्थोगालिप्रकीर्णक, मावश्यकरिण, आवश्यक-हारिभद्रीया टोका. परिशिष्टपर्व मादि प्राचीन मान्य ग्रन्थोंमें जहाँ चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहु (थुतकेवली) का चरित्र वर्णन किया गया है वहाँ द्वादशवर्षीय दुष्काल......."छेदमूत्रोंकी रचना प्रादिका वर्णन तो है परन्तु वराहमिहरका भाई होना, नियुक्निग्रथों, उपसर्गहरस्तोत्र, भद्रबाहसहितादि ग्रंथोंकी रचनामे तया नैमित्तिक होनेम सम्बन्ध रखनेवाला कोई उल्लेख नहीं है / इमसे छः मूत्रकार भद्रबाहु और नियुक्ति प्रादिके प्रोता भद्रबाद एक दूसरेमे भिन्न व्यक्तियाँ है / ___ इन नियुक्तिकार भद्रबाहुका समय विक्रमको छठी शताब्दीका प्रायः मध्यकाल है; क्योकि इनके समकालीन सहोदर भ्राता वराहमिहरका यही समय मुनिश्चत है- उन्होंने अपनी 'पञ्चसिद्धान्तिका के अन्त में. जोकि उनके उपलब्ध ग्रंथोंमें अन्तकी कृति मानी जाती है, अपना ममय स्वयं निर्दिष्ट किया है और वह है शक संवत् 427 अर्थात् विक्रम संवत् 562 / यथा इससे में कई वर्ष पहले प्रापके गुरु मुनि श्रीचतुरविजयजीने श्रीविजयानन्दसूरीश्वरजन्मशताब्दि-स्मारकग्रंथमें मुद्रित अपने 'श्रीभद्रबाहुस्वामी' नामक गुजराती लेख में इस विषयको प्रदर्शित किया था और यह सिद्ध किया था कि नियुक्तिकार भद्रबाहु श्रुतकेवली भद्रबाहुसे भिन्न द्वितीय भद्रबाहु है और वराहमिहरके सहोदर होनेसे उनके समकालीन है / उनके इस लेखका हिन्दी अनुवाद अनेकान्त वर्ष 3 किरण 12 में प्रकाशित हो चुका है।