________________ 546 - जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश रूपमें कोई विद्वान् होने ही चाहिये जिनके पक्षका सन्मतिमें खण्डन किया गया है; परन्तु उनका कोई नाम उपस्थित नहीं किया / जहाँ तक मुझे मालूम है वे विद्वान् नियुक्तिकार भद्रबाहु होने चाहिये, जिन्होंने प्रावश्यकनियुक्तिके निम्न वाक्य-द्वारा क्रमवादको प्रतिष्ठा की है णाणंमि दसणंमिश्र इत्तो एगयरयंमि उवजुत्ता। सव्वस्स केवलिस्सा (स्स वि) जुगवं दो णस्थि उवमोगा / / 7 / / ये नियुक्तिकार भद्रबाहु श्रुतकेवली न होकर द्वितीय भद्रबाह है जो प्रष्टाङ्गनिमित्त तथा मन्त्र-विद्याके परगामी होने के कारण 'नैमित्तिक' कहे जाते है, जिनकी कृतियोंमे भद्रबाहसंहिता और उपमम्गहरस्तोत्रके भी नाम लिये जाते है प्रौर जो ज्योतिविद् वराहमिहरके सगे भाई माने जाते हैं। इन्होंने दशाश्रुतस्कन्ध. नियुक्ति में स्वयं अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहको 'प्राचीन विशेषगके साथ नमस्कार किया है. उत्तराध्ययननियुक्तिमें मरणविभक्ति के मभी द्वारोंका क्रमश: वर्णन करनेके अनन्तर लिखा है कि 'पदार्थोको सम्पूर्ण तथा विशदरीतिने जिन (केवलज्ञानी) और चतुर्दपूर्वी ( श्रुतकेवली) ही कहते हैं-कह सकते हैं. और पावश्यक प्रादि ग्रंथोंपर लिखी गई अनेक नियुक्तियोंमें प्रायवन, प्रायं. रक्षित, पादलिप्ताचार्य, कालिकाचार्य और शिवभूति प्रादि कितने ही ऐसे प्राचार्यों के नामों, प्रमगों. मन्तव्यों अथवा तत्सम्बन्धी अन्य घटनामोंका उल्लेख पावयणी' धम्मकही वाई गामित्तियो' तबस्सी" य / विज्जा सिद्धी य कई अटुं व पभावगा भणिया / / 1 / प्रजरक्ख' नदिमेलो मिरिगुत्तविणेय भवाह य / खवग ऽज्जखवुड समिया' दिवायरो' वा ऽहाऽऽहरणा // 2 // -'छेदसूत्रकार प्रने नियुक्तिकार' लेख में उदधृत / + वदामि महबाह पाईरणं परिमसगलमयसारिंग / सुत्तस्स कारगमिमि दसासु कप्पे य ववहारे // 1 // मने ए दाग मरगविभत्तीइ बधिया कमसो। गंगलणि उरणे पगत्ये जिणच उदमपुखि भासते // 233 / /