________________ 554 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश द्वारा बाह्य प्रभाव एवं उल्लेखादिका विश्लेषण-, उसके वाक्यों तथा उसमें चचित खास विषयोंका अन्यत्र उल्लेख, प्रासोचन-प्रत्यालोचन, म्वीकारअस्वीकार अथवा खण्डन-मण्डनादिक और साथ ही सिद्ध सेनके व्यक्तित्व-विषयक महत्त्वके प्राचीन उद्गार / इन्हीं सब साधनों तथा दूसरे विद्वानोंके इस दिशामें किय गये प्रयत्नोंको लेकर मैंने इस विषय में जो कुछ अनुसंधान एवं निर्णय किया है उसे ही यहार प्रकट किया जाता है: (1) सन्मतिके कर्ता सिद्धसेन केवलीके ज्ञान-दर्शनोपयोग-विषय में अभेदवादके पुरस्कर्ता हैं यह बात पहले ( पिछन्ने प्रकरण में) बतलाई जा चुकी है / उनके इस प्रभेदवादका खण्डन इधर दिगम्बर सम्प्रदाय में सर्वप्रथम प्रकलंक देवके गजवानिकभाष्यमे और उधर श्वेताम्बर-सम्प्रदायमें मर्वप्रथम जिनभद्रक्षमाश्रमरणके विशेषावश्यकभाप्य तथा विशेषगावती नामक ग्रन्थोंम मिलता है। साथ ही तृतीय काण्डकी 'गन्थि पुढवीविगिट्टा' और 'दोहि वि गएहि गीय' नामकी दो गाथाएं ( 52, 46 ) विशेषावश्यकभाप्यमें क्रमश: गा० नं० 21842165 पर उद्धृत पाई जाती है / इसके सिवाय, विशेषावश्यकभाकी स्वोपाटीकामे * 'गामाइतियं दबोट्टयम्स' इत्यादि गाया ७५वीं की व्याख्या करते हुए ग्रन्थकारनं म्वयं "दन्यास्तिकनयावनम्बिनी मग्रहव्यवहारी ऋजमूत्रादयस्तु पर्यायनयमतानुमारिगाः प्राचार्यामद्धमनाभिप्रायान' इस वाक्यके द्वारा मिद मेनाचार्यका नामोलादपूर्वक उनके मन्मतिमूत्र-गत मतमा उल्लेख किया है, ऐमा मुनि पुण्यविजयजीके मामर मुदि १०मी म०.०० के एक पत्रमे मालूम हुया है। दोनों ग्रन्थकार विक्रमकी ७वीं शताब्दी के प्राय: * गजवा० भा० अ० 6 मु० 10 वा 14-16 / * विशेष/० भा० गा० 3086 से (काटयाचार्य की निमें गा. 37 ) तथा विशंपणवती गा० 184 से 280; मन्मति-प्रस्तावना पृ० 75 / + उद्धरण-विषयक विशेष ऊहापोह के लिए देखो, मन्मति- प्रस्तावना पृ. 68, 66 / * इस टीकाके अस्तित्वका पता हालमें मुनि पुण्यविजयजीको बलाहै। देवी, श्री पात्मानन्दप्रकाश पुस्तक 45 प्रक पृ० 142 पर उनका तविषयक लेख।