________________ 538 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश सिद्ध सेनाचार्यको अनेक प्रतियोंमें श्वेतपट (श्वेताम्बर) विशेषणके साथ 'दुष्य' विशेषरणमे भी उल्लेखित किया गया है, जिसका अर्थ द्वषयोग्य, विरोधी अथवा शत्रुका होता है और यह विशेषण मम्भवतः प्रसिद्ध जैन मैद्धान्तिक मान्यनामोंके विरोधके कारण ही उन्हे अपनी ही मम्प्रदायके किसी प्रमाहिष्णु विद्वान् - द्वारा दिया गया जान पड़ता है। जिस पिकावावपके साथ हम विशेषण पदका प्रयोग किया गया है वह भाण्डारकर इन्स्टिटयूट पूना और नियाटिक सामाइटी बङ्गाल (कलकता) की प्रतियों में निम्न प्रकारमे पाया जाता है:'द्वेष्य-श्वेतपट मिद्धमेनाचार्यस्य कृनिः निश्चय द्वात्रिशिकैकोनविंशतिः / " दूसरी किसी द्वात्रिशिका अन्न में ऐमा कोई पुषिकावाक्य नहीं है। पूर्वको 18 और उनरवर्ती 1 मे 16 द्वात्रिशिकामों के अन्नमें तो क का नाम तक भी नहीं दिया है-द्वात्रिशिका की मम्यामूना एक पंक्ति पनि' शब्द पुक्त अथवा वियुक्त प्रौर कही कही द्वाविगिका नामके माथ भी दी हुई है। (6) दात्रिविकानोंको उपयुन स्थिनिमें यह कहना किसी तरह भी ठीक प्रतीत नहीं होता कि उपलब्ध मभी द्राबिगिका प्रयवा / यी को छारकर बीम द्राविधिका मन्मनिकार मिटमेनकी ही कतिया है: क्योंकि पहली इमरी. पांचवी प्रौर उन्नीसवी मेमो नार द्वात्रिविकानों की बाबत हम कार दम्य नक है कि वे मन्मनके विरद्ध जाने के कारण मानिकारकी कनिया नहीं बनना / शेष द्वात्रिशिकार यदि इन्ही नार द्वात्रिशिकाग्रोक का मिसनोममे निमार या एकमे अधिक मिद मेनोंको निनाई नो भिन्न व्यक्तित्वक भाग उनमेम कोई भी मन्मतिकार मिद्ध मेनको कति नही हो सकती / मोर पतिमान है तो उनमम अनेक त्रिविका मन्मतिकार मिद्ध मेनकी भी शनि हो सकती है: परन्तु है और अमुक अमुक है यह निचितपम उम वक्त ना नहीं कहा जा मकता जब तक इस विषयका कोई स्पट प्रमाण मामने न पाजाय। (7) प्रब रही न्यायावतारकी बात, यह अथ मन्मानमत्रमे कोई एकानाम्दीमे भी अधिक बादका बना हुपा है क्योकि इसपर ममानभद्रस्यामीक नरकालीन पात्रस्वामी (पात्रकमा) जस जैनाचार्योका ही नहीं किन्तु धमंकीति और धर्मोत्तर जैसे बौद्धाचार्योंका भी स्पष्ट प्रभाव है। ग.हमंन जैकोबीके मना