________________ सन्मतिसूत्र और मिद्धमेन 535 ज्ञान-विषयक अपने उन स्वतन्त्र विचारों को भी प्रकट कर सकते थे, जिनके निये ज्ञानोपयोगका प्रकरण होने के कारण वह स्थल (मन्मतिका द्वितीय काण्ड) उपयुक्त भी था; परन्तु वैसा न करके उन्होंने वहां उन द्वात्रिशिकाके विरुद्ध अपने विचारोंको रक्या है और इनिये उमसम्म यही फलित होता है कि वे उक्त द्वात्रिमिकाके कर्ता नहीं है ---उम के कर्ता काई दूमर ही मिद्धमेन होने चाहिये। उगाय यगोविजयजी ने विलिकाका पायावतार प्रौर मन्मनिके माय जो उन विगंध वैठना है. उसके गम्वन्धमे कुछ भी नहीं कहा। यही इतना प्रौर भी जान लेना चाहिये कि धनको घमान्यनारूप इन प्रावियिकाके कथनका विरोध न्यायावतार और मम्मनिक माय ही नहीं है बल्कि प्रयम दविमिकाके साथ भी है. जिसके. 'मनिनन न. टन्यादि ३०वे पचमें ‘जगारमाण जिनवावविध प:' जर गदादाग प्रवचनम्प धनको प्रमाण माना गया है / () निम्न पदात्रिकाको दो वन पोर भी पहा प्रकट कर देने की है, जो मन्मतिक माय पत्र विगे रखती है मोर वे निम्न प्रकार है: --- "झान-दर्शन-चारित्राग युपायाः शिवह नवः / अन्याऽस्य-प्रनिपतवान्द्रद्वावगम-शनयः ।।दा इम प में जान, दान नया चारित्रको मोक्ष-हेमोके मरमे तीन उपाय (मार्ग) बनलाया है-नीनोक मिनाकर मोक्षका एक उपाय निर्दिष्ट नहीं किया; जमा कि तन्वाधमत्रक प्रथममप मे मोक्षमाग ' म एकवचनामक परके प्रयोगबाग किया गया है। पर ये तीनो यही ममम्ता में नही किन्न पान (अलग अलग) में मोसो मागं निर्दिष्ट का है ग्रोर उसे एक दमरे के प्रतिपक्षी निबा है / माय ही नीनों मम्गक विशेगन्ध है पोर दगंन को ज्ञानकं पूर्व न रखकर उसके प्रनन्तर रखा गया है, जो कि ममूना शिकार प्रदान प्रर्थका वाचक भी प्रतीत नहीं होता। यह मब कयन मन्मनिमने निम्न वाक्योंके विध जाता है, जिनमें मम्मम्मान-शान चारित्रको प्रतिनिमे मारत भव्यजीवको मारके दुःखों का मनकाम्पमे उन्न त किया है पीर कयनको हेनुबादमम्मत बतलाया है ( 3-4 . ) तथा दन गन्दका प्रथं जिनगीत पदार्थोंका श्रदान ग्रहण किया है। माय हो सम्यग्दर्शनके उतरवर्ती सम्यग्नानको सम्यग्दर्शन