________________ सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन 531 ___"केचन सिद्धसेनाचार्यादयः भरणंति, किं ? 'युगपद्' एकस्मिन्नेव काले जानाति पश्यति च, कः ? केवली, न त्वन्यः, नियमान् नियमेन / " नन्दीसूत्रके ऊपर मलयगिरिसूरिने जो टोका लिखी है उसमें उन्होंने भी युगपद्वादका पुरस्कर्ता सिद्धसेनाचार्यको बतलाया है / परन्तु उपाध्याय यशो. विजयने, जिन्होंने सिद्धसेनको प्रभेदवादका पुरस्कर्ता बतलाया है, ज्ञानबिन्दु में यह प्रकट किया है कि 'नन्दीवृत्तिमें मिद्ध सेनाचार्यका जो युगपत् उपयोगवादित्व कहा गया है वह अभ्युपगमवाद के अभिप्रायने है, न कि स्वतन्त्र सिद्धान्नके अभिप्रायमे; क्योंकि कमोपयोग और प्रक्रम ( युगपत् ) उपयोगके पर्यनुयोगाऽनन्तर ही उन्होंने मन्मतिमें अपने पक्षका उद्भावन किया है. +', जो कि ठीक नहीं है। मालूम होता है उपाध्यायजी की दृष्टि मे सन्मतिक कर्ता मिद्धमेन ही एकमात्र सिद्ध मेनाचार्य के रुपमे रहे हैं और इमोसे उन्होंने सिद्ध येन-विषयक दो विभिन्न वादोंके कथनों में उत्पन्न हुई प्रमङ्गतिको दूर करने का यह प्रयत्न किया है, जो ठीक नहीं है। चुनांच प०मुम्बलाल जीने उपाध्याय जीके इस कथनको कोई महत्त्व न देते हुए और हभिर जैसे बहुश्रुत प्राचार्य के इस प्राचीनतम उल्लेख की महत्ताका अनुभव करते हु / ज्ञानबिन्दुक परिचय (प.६०) मे अन्तको पह लिखा है कि "समान नामवाले प्रनेक प्राचार्य होने प्राण है / इसलिये असम्भव नहीं कि सिद्धसेनदिवाकरमे भिन्न कोई दूसरे भी सिद्ध मन हुए हों जो कि! युगपद्वादक समर्थक हुए हो या माने जाते हों।' वे दूसरे मिद्ध सेन अन्य कोई नही, उक्त तीनों द्वात्रिनिकायों में से किमीक भी कर्ता होन चाहियं / अत: इन तीनों द्वात्रिशिकायोको सन्मतिमूत्रके कर्ता मावार्य मिद्धमेनकी जो कृनि माना जाता है वह ठीक और सगत प्रतीत नहीं होना / इनके कर्ता दूसरे ही मिद्धमेन है जो केवली के विषय मे युगपद्-उपयोगवादी पे और जिनकी युगपद-उपयोगवादिताका समर्थन हरिभद्राचार्य के उक्त प्राचीन उल्लेखमे भी होता है। ."यतु युगपदुपयोगवादित्वं सिद्ध मेनाचार्यागां नन्दिवृत्तावुक्त तदम्युपगमवादाभिप्रायेगा, न तु स्वतन्त्र सिद्धान्ताभिप्रायेण, क्रमाऽक्रमोपयोगदयपर्यनुयोगानन्तरमेव स्वपक्षस्य सम्मती उद्भावितत्वादिति दृष्टव्यम् / " - ज्ञानबिन्दु 10 33 /