________________ सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन 50 संतम्मि केवल दसम्म रणायाम्म संभवा गस्थि / केवलणागम्मि य इमाणम्स तम्हा महिणाई // 8 // दसणणाणावरणखए ममाग्गम्मि कम्म पुठ्य पर। होउन ममं उपाश्री हंदि दुवं गाथि उवोगा / / || अण्णायं पामंता अद्धिच अरहा वियागना। कि जाण किं पामइ कह मन्चरण नि वा होइ / / 13 / / गाण अप्पुढे अविमा य अम्मि दमणं हाइ / मोत्तमा लिंगी जं अगागयाई विमाएमु / / 5 / / जं प्रापर्ट भाव जागाइ पामह य कंवला गाथमा। तम्हा न गाणं दंमग न अविममा मिद्धा / / 3 / / नीम मनमनिमय के कना किमान अभेद वादक परमया माने जाते है / टीकाकार अभदवार पोर नाबन्दुक का आध्यान यमाविजयन नामा ही प्रादन किया है / नविन्द नायक मन्मत-माया योनी व्यान्या करना उनकम वादका नाममना रहन-मन: सिद्धमनको यादीही मुझचन प्रथा उपना नया मानस नाव ? / जान बन्दका परिचयात्मक प्रमावना पादिमे म. गबनाननीन भी होगा की / (1) पानी. दुमरी र पारः गदाद मान्यताको लिये दुप. जगा कि निम्न बायाम हैक.-जगन्ने कायम्य युगपत खिलानिन्नविषय गहना प्रत्यक्ष नव न च भयान कस्यचिदपि / अनेनेवाऽनित्य-प्रकृति रम-सिद्धम्न विदपां ममोहयतवार नव गुण वयं का वयमपि / / - / / व - नानि विविरममि नवम्याम नायवेत्सी मजातवानाम न तेऽच्युत : वंदामस्ति / त्रैकाल्य-नित्य-विपमं युगपच्च विश्व पश्यस्यचिन्त्य-चरिताय नमोऽस्तु तुभ्यम् // 2.30 // ग-अनन्त मेक युगपन त्रिकाल शन्दादिभिनिप्रति घातनि / / 5-2||