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________________ सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन 511 शिकापंचक) का स्वामी समन्तभद्रके स्वयम्भूम्त्रोत्र के साथ साम्य घोषित करके तुलना करते हुए लिखा है कि 'स्वयम्भूस्तोत्रका प्रारम्भ जिस प्रकार स्वयम्भू शब्दमे हाता है और अन्तिम पद्य (143) में ग्रन्थकारने श्लेषरूपमे अपना नाम समन्तभद्र भूचित किया है उसी प्रकार इस द्वाविगिकापंचकका प्रारम्भ भी स्वयम्भू शम्से होता है और उनके अन्तिम पद्य ( 5, 32 ) में भी प्रन्यकारने श्लेषरूपमें अपना नाम मिटमेन दिया है।' इममे शेप 15 द्वात्रिशिकाएँ भिन्न ग्रप अथवा प्रपोंमे मम्बन्ध रखती है और उन में प्रथम ग्राको पद्धतिको न मपनाये जाने अथवा अन्नमें ग्रन्थकारका नामोल्लेख नक न होने के कारण वे दूसरे मिद्धमेन या मिद मेनोंकी कृतियां भी हो सकती है / उन मेमे ११वा किसी राजाकी म्नतिको लिा हप है, छटी नया पाठवी ममीक्षात्मक है पोर गंप बारह दार्शनिक तथा वस्तुस वाली है। इन मन द्वात्रिशिकागो के सम्बन्धमे यहां दो बाते प्रोर भी नोट किये जाने के योग्य है ..एक यह फिद्वत्रिनिका ( बनीमी) होने के कारण जब प्रत्येकको पद्यसंख्या 32 होनी चाहिये थी तब वह घट-बदर में पाई जाती है। 10 वामें दो पद्य तया 21 वीमें एक पच बहती है, और वीमे दह पद्यारी. ११वी में नारकी तथा १५वी में एक पार पटनी है / यह घट-बढ भावनगरको उक्त मुदित प्रतिमें ही नहीं पाई जाती व पूनाके भारदारकर मिट्यूट और कनकनाकी एशियाटिक मामाइटीकी हम्मालग्विन प्रतियोम भी पाई जाती है। रचना-गमयकी नो यह रट- प्रीतिका विषय नही-५० मुम्बलालजी ग्रादिने भी लिया है कि 'बद-पटकी यर घालमेन रनना के बाद ही किसी कारगम होनी चाहिये।मका एक कारण लेनकोको प्रगावधानी हो सकती है जग वो प्राप्रिमिकामें एक पराकी कमी था व पूना पोर बलवनाकी प्रतियोंग पूरी हो गई। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि किमाने प्रने प्रजनके वा यह घाममेल की हो / कुछ भी हो सर उन दाक्षिकाप्राक पूर्णरूपका नमझने पादिमें बाधा पर रही है. म ११वी नाकामे यह मालूम ही नहीं होता कि यह कोनमे रामाको स्मृति है, पोर इममें उसके रचयिता नथा रचना-कानको जानने में भारी बाण उपस्थित है। यह नही हो सकता कि किसी विशिष्ट राजाकी स्तुति की जाय और उममें उसका नाम तक भी न हो-दूसरी स्तुन्या
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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