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________________ सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन . पुराण, जिसका उल्लेख केशवसेनमूरि-(वि० सं० 1688) कृत कर्णामृतपुराणके निम्न पदोंमें पाया जाता है और जिनमें उसकी इलोकसंख्या भी 15630. दी हुई है-- मिद्धोन-नीनिसारादिपुराणोद्भूत-मन्मति / विधाम्यामि प्रमन्नार्थ प्रन्थ सन्दर्भगर्भितम् // 16 // स्ववाग्निरमवारणेन्द्र (153300) लोकसंख्या प्रमृत्रिता / नीनिमारपुराणम्य मिद्धमेनादिमृरिभिः // 28 // उपलब्ध न होने के कारगा ये नीनों ग्रन्थ विचारमें कोई महायक नहीं हो मकने / इन माठ ग्रन्योके पलावा चार ग्रन्थ पोर है.-१ द्वात्रिंगवात्रशिका, * प्रम्मन मन्मतिमत्र. 3 न्यायावतार और 4 कल्यागादिर / 'कन्यागणमन्दिा' नामका स्तोत्र ऐमा है. जिसे वताम्बर सम्प्रदायमें मिद्ध मेनश्विाकरको कृति ममझा और माना जाता है, जबकि दिगम्बर-परम्परामे वह स्तोत्र अन्तिम पद्यम मुक्ति किये हा कुमुदचन्द्र नामके अनुमार कुमुदचन्द्रा बायको कति माना जाता है। इस विषयमे बराबर मम्प्रदायका यह कहना है कि मिद्धमेनका नाम दीक्षाके ममय मुन्द्र मना गया था प्राचार्य पदके ममय उनका पुराना नाम हो उहद दया गया था, मा प्रभानन्दमूरिक प्रभावकारित (म. 1934) में जाना जाता है प्रोर समलिये कल्याणमन्दिरमे प्रयुक्त हमा 'कुमुदचन्द्र' नाम मिदमनका ही नामानर है।' दिगम्बर समाज इसे पीछेकी कल्पना और एक दिगम्बर कतिको हपियानको योजनामात्र ममझता है; क्योंकि प्रभावकाग्नि के परम मिद्धसेन-विषयक जो दो प्रबन्ध लिखे गये है उनमें कुमुदचन्द्र नामका कोई उल्लेम्ब नही है.-५० मुम्बलालजी पोर पं० वेचरदामनीने पपनी प्रस्तावनामें भी इस बातको व्यक्त किया है। बादक बने हा मेस्तुगाचार्य के प्रबन्धचिन्तामणि (म० 1361) अन्य में प्रोर जिनपभूमूरिके विविधनीपाल्प ( म० 1386 ) में भी उसे पपनाया नहीं गया है / राजशेखर के प्रबन्धकोश प्रारनाम चविशनि-प्रत्र (मं० 1405) में कुमुदचन्द्र नामको वपनाया जरूर गया है परन्तु प्रभावकरिसके विरुद्ध कल्याणदिरस्तोत्रको 'पायनापहारिशिका के रूपमें व्यक्त किया है और साथ ही यह भी
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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