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________________ 514 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश शिकामों तथा न्यायावतार-को इन्हीं प्राचार्यकी कृति समझा जाता और प्रतिपादन किया जाता है उनमे भी कोई परिचय-पद तथा प्रशस्ति नही है / पौर न कोई ऐसा स्पष्ट प्रमाण अथवा युक्तिवाद ही सामने लाया गया है जिसमे उन सब ग्रन्थोंको एक ही सिद्ध मेनकृत माना जासके / पोर इस लिये अधिकांशमें कल्पनामों तथा कुछ भ्रान्त धारणाप्रोके माधार पर ही विद्वान लोग उक्त बातोंके निर्णय तथा प्रतिपादन में प्रवृत्त होते रहे है। इसीसे कोई भी ठीक निर्णय अभी तक नहीं हो पाया-वे विवादापन ही चली जाती है और मिद्ध मेनके विषय में जो भी परिचय-लेख लिखे गये है वे सब प्राय: खिचड़ी बने हुए है और कितनी ही गलतफहमियोंको जन्म दे रहे तथा प्रचारमे ला रहे है / प्रतः इस विषयमे गहरे अनुमन्धानके साथ गम्भीर विचारको जरूरत है और उसीका यहाँ पर प्रयत्न किया जाना है। दिगम्बर प्रौर श्वेताम्बर दोनो मम्प्रदायोमे मिदसेनके नामपर जा अन्य चढ़े हुए है उनमें से कितने ही ग्रन्थ तो हम है जो निश्चिनपमे दुसरे उनरवती मिद्धसे नोंकी कृतियां हैं: जमे 1 जीनकगि 2 तन्वाधिगममूत्रकी टोका, 3 प्रवचनमागेद्धारकी वृनि, 4 विनिम्यानप्रकरगा / प्रा०) मोर 5 मिदिघे यसमुदय (शकस्तव) नामका मंत्रभिन गाम्नांत्र / कृय पथ मे है जिनका मिद्धमेन नामके माथ उल्लेख ना मिलता है, परन्त प्राज वे उपलब्ध नहीं है, जैसे 1 वहनषड्दर्शनममृत्नयल (जैनग्रन्यावली पृ० 14), 2 विषोग्रग्रहशमनविधि, जिसका उल्लेख उग्रादिन्याचायं (वि.म.वी तादी) के 'कल्याणकारक' बंधक ग्रन्थ (24-85 / म पाया जाता है और 3 नीतिमार. * हो सकता है कि यह प्रथ हरिभद्रमूरिका 'पडदर्शनममुपर ही हो और किसी गलतीमे मूरनके उन मेठ भगवानमाम कल्याणदामकी प्राइवेट रिपोर्ट में, जो पिटसन साहबकी नौकरी में थे, दर्ज हो गया हो, जिमपरमे जैनगन्यावलीमें लिया गया है ? क्योंकि इसके साथमें जिस टीकाका उल्लेख है उसे 'गुग्गरत्न' की लिखा है पौर हरिभद्रके पार्शमसमुचयपर गुणरत्नकी टीका है। __ "शालाग्यं पूज्यपाद-प्रकटितमधिकं शल्यतंत्र र पात्रस्वामि-प्रोक्त वियोगग्रहशमनविधिः सिढसेन: प्रमि।"
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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