________________ सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन संविग्नमुखाधिगम्य है। मिध्यादर्शनोंका समूह होते हुए भी वह मिथ्यात्वरूप नहीं है, यही उसकी सर्वोपरि विशेषता है और यह विशेषता उसके मापेक्ष नयवादमें मंनिहित है-मापेक्षनयमिथ्या नहीं होते,निरपेक्ष नय ही मिथ्या होते है। जब सारी विरोधी दृष्टियां एकत्र स्थान पाती है तब फिर उनमे विरोध नहीं ग्रता और वे महज ही कार्य-माधक बन जाती है / इमीपरमे दुसरा विशेषण ठीक घटित होना है,जिसमें उसे अमृतका अर्थात् भवदुःखा प्रभावमा प्रविनासी मोगका प्रदान करनेवाला बतलाया है। क्योंकि वह मुम्ब प्रयया भवदःखविनाश मियादर्शनासे प्राप्त नही होता, इमे हम ५५वी गायामे जान चुके है। तीसरे विगंगा के द्वारा यह मझागा गया है कि जो लोग ममारके दुखों-कने गोंमें उद्विग्न हाकर मवेगको प्राप्त हुए है- मन मुमुक्षु बने है- लिये जैनदगंन प्रथया जिनमामन मबम मममम पाने योग्य है.--कोई यटन नहीं है। इममे परमवा गाया 'प्रत्याई उग गायवाय गदग नीगा दुर्गभगम्मा' वायर द्वारा की जिस प्रगतिको नयवाद गहन-वन में लीन प्रोर दुर. भिगम्प बनाया या उमीन पर अधिक रिपोर निये यह सुगम घागिन किया गया है. र मब अनेरानाष्टकी महिमा है। अपने गे गुगण के कारण ही जिनकपन नगवामा प्राप्त है - .. 'स्य है। निम गया जिम प्रसार जिन्सामनका गमगा किया गया है उसी प्रकार का प्रतिम गाया में किया गया। प्रादिम गाथा किन fuuri. माघ स्मरण रिपा गया है यह भी पाटकोंक जानने योग्य है और इसलिये उम गाथा को भी यहा दान किया जाना है. -- सिद्ध मित्याग दागमाग बममह उवगया / कममय-विमामगं माम जिग्गागं भवजिणागां // इसमें भी जीवामी - मान-प्रागम के चार विशेषण faगये?- गिट, मिनायो म्यान. : शरणागतोंके लिये मनुाम •fमामशान मकाननाननः / निरक्षा नया मिया मात्रा वायंगत् / / 108 / / -देशागमे, स्वामिममन्तभद्रः /