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________________ - - - -- - 510 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश पिकोंके प्रमद्वाद पक्ष में सांप जन जो दोष देते हैं तथा बौद्धों और वैशेषिकोंके प्रसद्वाद पक्षमें मारूपजन जो दोष देते हैं वे सब सत्य है-सर्वथा एकान्तवादमें वैसे दोष पाते ही है / ये दोनों मवाद और प्रमदाद दृष्टियां यदि एक दूसरे की अपेक्षा रखते हुए मयोजित हो जाय-ममन्ययपूर्वक अनेकान्तदृष्टि में परिणत हो जायें-तो मतिम सम्यग्दर्शन बनता है: क्योंकि ये सत्प्रसत्मा दोनों दृष्टियां मना अलग ममारके दुःवमे छुटकाग दिलाने में ममर्थ नहीं है -दोनों के मापेक्ष मंगोगमे ही एक-दूसरे की कमी दूर होकर ममारके दु.म्वान मानि मिल सकती है जे मंतवाय-दमे मकालूया भरगंनि संस्थागं / मंस्वा य अमव्याप तमि मब्व वि ने मचा / / 5 / / ने उ भयगवणीया सम्ममगमगुगु नरहनि / जं भव-दरव-विमाकवं दा विगा प्रीति पाडिक्कं // 1 // इम मब कथनसम्म मियादर्शनो पोर सम्यमनमानन्ध मनोगमभमे प्राजाता है और यह मालूम हो जाता है कि कंग मभी मिथ्यादान मिलकर सम्यग्दर्शन के मे परिगान हो जाते है। मियादशंड अथवा जननदर्शन जब तक अपने प्राने वनव्या प्रतिपादन में कालनाको प्रारार पविगंधका लक्ष्य रखते है तब तक ये सम्यग्दशनमें परिणत नही होने, और जब विरोधका नःश छोड़कर पारम्परिक प्रपाको लिये हए मम यकी टिकी अपना है तभी सम्यग्दर्शन में परिगान हो जाते है पोर जनदमन कहलाने के योग्य हाने / / जैनदमन अपने प्याट्टादन्याय द्वारा समन्वयकी टिका लिया है-समावरही उमा नियामक तत्व है, न कि विगंध-पोर इमानये ममी मियादान अपने अपने विधलभुलाकर उममे ममा जाने है। मांग प्रत्यको अन्तिम गाथा में जिनवचनमप जिनशामन प्रथवा जनदमनकी मानकामना मन उमे मिच्या दांनोका ममत्रमय बतलाया। 4 गाथा इस प्रकार :--- भर मिच्छामण-महमइयम्स प्रमयसारम / जिणवयस्म भगवा मंयिम्गमहाहिगम्मम्म / / 70 // इममें जनदर्शन ( शासन ) के तीन बाम विशेषणों का उल्लेख किया गया है-पला विरोपण मिथ्यावर्शनसमूहमय, दूसरा प्रमृतमार और तीसरा
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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