________________ 512 जनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश सुखस्वरूप, 4 समयों-एकान्तवादरूप मिथ्यामतोंका निवारक / प्रथम विशेषणके द्वारा यह प्रकट किया गया है कि जैनशासन अपने ही गुणोंसे प्राप प्रतिष्ठित है। उसके द्वारा प्रतिपादित सब पदार्थ प्रमागणसिद्ध है.-कल्पित नहीं है-यह दूसरे विशेषणका अभिप्राय है और वह प्रथम विशेषण मिद्धवका प्रधान कारण भी है। नीमरा विशेषरण बहुत कुछ स्पष्ट है, और उसके द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि जो लोग वास्तव में जनगामनका प्राश्रय नेते है उन्हें अनुपम मोक्ष-मुख तक की प्राप्ति होती है / वौथा विशेपण यह बन जाता है कि जनगायत उन सब कुमामनों-मिथ्यादांनोंके गर्वको चूर चर करनेको शक्तिम सम्पन्न है जो मया एकन्नवादका प्राश्रय लेकर बामनारूद बने हा है और मिथ्यात्वोंके प्रमाण-द्वार जगतमै दम्बका जाल फैलाये हुए है। इस तरह प्रादि-अन्नकी दोनों गाशाम्रो जिनगामन अथवा जिन वचन (जैनागम) के लिये जिन विशेषगांका प्रयोग किया गया है उनमें एम सागर (दर्शन) का अमाधारमा महत्व और माहात्म्य च्यापिन होता है / और यद केवल कहने की ही बात नहीं है बल्कि मारे प्रत्यक इमे प्रदगित कर के बनानामा गया है। स्वामी ममनभरी दो प्रजान अन्धकारको पाप्ति (प्रमार / ' सचिन रूपमे दूर करके जिनमामन के माहात्म्यको जो प्रकाशित करना है - का नाम प्रभावना है। यह ग्रन्थ अपने विषय-वर्णन पोर विवेचनादिका इम प्रभावनाका बन कुछ माधक है मोर इमीलिये इसकी भी गाना प्रभाव ग्रन्थों में की गई है / यह प्रन्य जननका ध्ययन करनेवाली पोर जनदानम जैनेनर दर्शनोंक भेदको ठीक अनुभव करनको इच्छा रखने वालोंके लिये 31 कामकी चीज है और उनके द्वारा बाम मनोयोगके मापदं जाने तथा मनन किये जानेके योग्य है। इसमें अनेकान्नक प्रगम्बार जिम नयवादको प्रमय चर्चा है और जिसे एक प्रकारमें भिगम्य गहना बन' बसलाया गया है -- "प्रजन-तिमिर-व्याप्तिमपाकृन्य यथायथम् / जिन-शाशन-माहात्म्य-प्रकाम: स्यात्प्रभावना // 18 // " -रलकरणया०