________________ सन्मतिसूत्र और सिद्धसेन है। द्रव्य पर्याय ( उत्पाद-व्यय ) के विना पोर पर्याय द्रव्य (घोव्य ) के विना नहीं होते; क्योंकि उत्पाद.व्यय और धोव्य ये तीनों द्रव्य-मत्का अद्वितीय लक्षण हैं.। ये तीनों एक दूसरेके साथ मिलकर ही रहते हैं, अलग-अलगरूपमें ये द्रव्य ( मन् ) के कोई लक्षण नहीं होने और इमलिये दोनों मूलनय अलग-अलग रूपमें-एक दूसरेको अपेक्षा न रखते हए-मिथ्यादृष्टि है / नीमरा कोई मूलनय नही है / और मा भी नहीं कि इन दोनों नयोंमें यथार्थपना न ममाता हो-वस्नुके यथार्थ बम्पको पूर्णत: प्रतिपादन करने में ये असमर्थ हो- ; क्योंकि दोनों एकान्त ( मिथ्याष्टियां ) अपक्षाविशेषको लेकर ग्रहण किये जाने हो अनेकान्त ( मम्यम्हष्टि ) बन जाते है / अर्थात् दोनो नयों मेमे जब कोई भी नय एक दूसरे सोमपेक्षा न बना हमा अपने ही विषयको मतम्प प्रतिपादन करनेका पाग्रह करना है तब वह अपने दाग ग्राह्य वनके एक अंगमें पूर्णताका मानने वाला होने मे मिथ्या है और जब वह अपने प्रतिपक्षी नयकी अपेक्षा रखता हमा प्रवर्तना है -उमा विषयका निग्मन न करता हया तटम्यरूपमे अपने विषय ( वतन ) का प्रतिपादन करता है-र वह अपने द्वारा ग्राह्य वस्तुके एक पाको प्रमाही। पूगंगामें नही ) मानने के नाग मम्यक व्यपदेशको प्राम होता है। हम मब पागयकी पान गाथा निम्न प्रकार है इल्यट्ठिय-यसव्यं यथ गिय मेगण पजवणयम्म / नह जयत्य अवयमेव व्यद्रियगायम्म // 10 // उपानि विति य भावा पजवरण सम्म / वाट्रियम्म म मया अप्परगामविगा।।१।। * "पजविन्द अविना य प गरिय। दोह परमार भाव ममता पविति // 1-1 // " -नाम्निकाये, श्रीकुन्दमन्दः / "सदायमाणम् / / || उपाययोयुक्त मन् // 30 // " तस्वायंमूत्र प्र०५॥ 1 नीमरे कागमें गुणाधिक ( पुग्णास्तिक ) नयको कल्पनाको उठाकर स्वयं उसका निरमन किया गया है ( गा०९ से 15) /