________________ 504 जैनसाहित्य और इतिहासपर विशन प्रकाश है उसी परसे उस पर्वादिकका नामकरण किया जाता है *, इस दृष्टिमे भी काण्डके अन्त में पचित जीवद्रव्यको चर्चाके कारण उमे 'जीवकाण्ड' कहना मनुचित नहीं कहा जा मकना / मज रही तीसरे काण्डकी बात, उसे कोई नाम दिया हुप्रा नहीं मिलता। जिस किमीने दो काण्डोंका नामकरण किया है उसने तीसरे काण्डका भी नामकरण कर किया होगा. सभव है खोज करते हुए किमी प्राचीन प्रतिपरमे वर उपलब्ध हो जाय / डाक्टर पी० एल. वंद्य एम० ए० ने, न्यायावतारकी प्रस्तावना ( Introduction) में इम काण्डका नाम प्रमंदिग्धगमे 'अनेकान्तवादकाण्ड' प्रकट किया है / मालूम नहीं यह नाम उन्हें किस प्रतिपरमे उपलब्ध हुपा है। काण्डके अन्तमें चचित विषयादिककी दृष्टिमे यह नाम भी ठीक हो सकता है / यह काण्ड भनेकानपिको लेकर अधिकागमें मामान्य-विशेषरूपमे प्रर्थको प्रगा पोर विवेचनाको निये हुए है, और इसलिये इसका नाम 'मामान्य-विशेगकाण्ड' अथवा 'द्रव्य. पर्याय-काण्ड' जमा भी कोई दो मकरा है / 20 मनाली मोर 10 बेवरदामजीने इसे 'जय-का' मूचित किया है, जो पूर्वकारको 'शानकार' नाम देने और दोनों काण्डाक नामामे श्रीकन्दकन्दा नार्य-प्रणीत प्रवचनसारक मानयाधिकारनामों के माय मानना नानी दिने मम्मद जार परता है। इम ग्रन्थकी गाथा-मम्मा 54. 43, 70 के क्रममे कुल 167 है। परन्तु पं० मुम्बनालजी मोर 10 बेचदासजी उमे पब 166 मानते हैं, क्योंकि तीमरे कार में अन्तिम गाया के पूर्व जो किन गाथा लिखित तथा मुद्रित मूलनियों में पाई जाती है जमे व ममि बादको पनि हुई ममझते हैं कि उसपर अभयदेवमरिकी टीका नी है: जेगा विणा लोगम्म वि ववहारो मवहाल रिणव्यस। तम्म भुवणेगुरुगा गामी अणेगनवायम्म / / 66 / / इसमें बतलाया है कि जिसके बिना नोकका व्यवहार भी सवंधा बन नहीं * जमे जिनमेनकृत हरिवंशपुराणके ननीय सर्गका नाम 'लिकप्रश्नवर्णन', जब कि प्रश्नके पूर्वमें वीरके विहारादिका और तस्वोपदेशका कितना ही विगंध वर्णन है।