________________ सन्मतिसूत्र और मिद्धमेन 'मनमतिमूत्र' जनवाङमय में एक महन्यका गौरवपूर्ण ग्रन्थगन है, जो दिगम्बर पोर श्वेताम्बर दोनो मम्प्रदायाम ममानम्पम माना जाता है / श्वेताम्बरा यह 'सम्मतिनक', 'मम्मतितकं प्रकरगा' तथा 'सम्मति प्रकरण' जैसे नामोम प्रधिक प्रमिद्ध है. जिनमें म:मति की जगह 'सम्मान' पद प्रशुद्ध है और वह प्राकृत 'सम्मह पदका गलत मकर रहै / पं. मृग्वलालजी प्रोर पर बेचरदामजीने ग्रन्थका गुजराती अनुगद प्रस्तुत करते हुए, प्रस्तावन में इम गलतीर घट प्रक, टला है और यह बतलाया है कि 'मनमति' भगवान महावीरका नामाना है, प्रा दिगम्बर-परपरामं प्राचीनकालमें अमिट तथा 'धनजयनाममा!' में भी उल्लेखित है. ग्रन्थ-नामके माय उमकी योजना होनेगे वह महावीर के मिलानोके माथ जहां ग्रन्धके मम्मन्यकोशाता है वहा इलेपम्प अंशमान प्रथं का मनन करता हुमा किनकि योग्य स्थानको भी मत है और इसलिये प्रोचियकी हाथमे 'मम्मनि म्यानार मन्मति' नाम ही टीच बंटना है / तदनुमार हो उन्होंने प्रत्यका नाम 'मन्मनि-प्रकरण प्रस्ट किया है दिगाबर-परम्पराके भवलादिक प्राचीन ग्रंथों में यह मामनिमत्र ( सम्ममन ) नामसे ही उल्लेखित मिलता है और यह नाम मन्मति-प्रकरगा नाममे भी अधिक पौचिन्य रखता 1"भरणेण मम्मामुनग मह कवधिः वयागा गण विज्झदे ? इदि गण, तप पग्जायस साबरण बागो भान्भुवगमायो।" (धवला 1) "रण र सम्मामुनेण मह विरोहो उसुमुद-गाय-विमय-भावरिणखेवमस्सिदूरण ताउत्तीदो।' (जयपवला )