________________ 500 जनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश ईसाको प्रायः छठी शताब्दीसे-बादका बना हुमा है, ठीक मालूम नहीं देता। मेरी समझमें यह अथ उमास्वतिके तत्त्वार्थ मूत्रसे अधिक बादका नहीं- उसके निकटवर्ती किसी समयका होना चाहिये / और उसके कर्ता वे अग्निपुत्र कातिकेय मुनि नही हैं जो प्रामतौर पर इसके कर्ता समझ जाते है और कोच राजाके द्वारा उपसगको प्राप्त हुए थ, बल्कि स्वामिकुमारनामकं प्राचार्य ही है जिस नाम का उल्लख उन्हान स्वय अन्तमगलकी निम्न गाथाम इलेपम्पम भी किया है तिहुयण-पहाण-सामि कुमार-काल वि त वय तवयरगं / यमुपुज्जमुयं मल्लि चरम नियं मथुव णिच // 486 / / इनमे यमपूज्यमुत-वामपूज्य, माल और अन्तके तीन नमि, पाच्य नया वर्द्धमान ऐमें पोर कुमार-धमग नीमको वदना की गई है, जिन्होंने मागवस्थामे ही जिनदीक्षा लेकर नपश्चगा किया है और जो तीन लान के प्रधान म्वामी है। और इसमे मा अनिन होता है कि ग्रन्थकार भी कुमारचमगा थ, बाल ब्रह्मचारी थे और उन्होने बाल्यावस्था हो जिनतीक्षा लेकर नाना किया है-जैमाकि उनके विषय में प्रसिद्ध है, और इमाम इन्होंने अपनीरूप में इष्ट पांच कुमार तीर्थङ्कनकी यह स्तुति की है। म्वामी-गन्दका व्यवहार दक्षिण देशमं अधिक है, और वह व्यक्तिक माथ उनकी प्रतिष्ठाका द्योतक होना है। कुमार, कुमारमेन, कुमारमन्दी और कुमारम्नाम' जैसे नामोके पानायं भी दक्षिण में हाहै। दक्षिण देशमे बात प्राचीन कालसे क्षेत्रपालकी पूजाका प्रचार रहा है और इम ग्रन्यकी गाथा - 25 में 'क्षेत्रान' का स्पष्ट नामाने व करके उमर विषयमं फैली हर सासम्बन्धी मिथ्या धारणाका निबंध भी किया है / इन मब बनोरम दायका महोदय प्राय: दक्षिण देशके पानायं मालूम होते है. जैसा कि हास्टर उगायन भी अनुमान किया है।